’इन चुप्पियों के हाथ कैसे रंगे हैं खून से
क्षत-विक्षत शब्द पड़े हैं जो हर तरफ मौन से’
एकनाथ शिंदे के सिर अभी-अभी तो सिरमौर का ताज सजा है, गाजे-बाजों का शोर भी हर ओर गुंजायमान है, फिर भी क्या बात है कि चुप सन्नाटों की बतकहियां उन्हें इस हद तक परेशान कर रही हैं। आखिर क्यों वे बीएमसी चुनावों तक अपने मंत्रिमंडल का विस्तार टाले रखना चाहते हैं, क्यों अभी से उन्हें अपनों की नाराज़गियों का डर खाए जा रहा है? सूत्र बताते हैं कि भाजपा व शिंदे के दरम्यान जो सहमति बनी है उसके अंतर्गत शिंदे कैबिनेट में कुल 45 मंत्री शामिल किए जा सकते हैं, जिसमें 25 मंत्री भाजपा के कोटे से होंगे, 13 शिंदे के कोटे से और 7 निर्दलीय विधायकों को मंत्री बनाया जा सकता है। यानी भाजपा के हर 4 विधायकों में से एक और शिंदे गुट के हर 3 में से एक मंत्री होगा, वहीं निर्दलियों की तो पौ बारह रहने वाली है, उसके हर सवा दो विधायकों में से एक मंत्री होगा। पर जरा सोचिए उन 10 निर्दलीय विधायकों का क्या होगा जो मंत्री नहीं बन पाएंगे? क्या वे फिर भी शिंदे सरकार को अपना समर्थन देना जारी रखेंगे? वहीं उद्धव सरकार से टूट कर आए 8 मंत्री भी फिर से मंत्री बने रहना चाहेंगे। अभी पिछले दिनों दिल्ली में शिंदे ने पीएम और अमित शाह से मुलाकात की, उनसे कहा गया है कि वे पहले अपनी उपयोगिता साबित करें यानी पिछले 25 सालों से जिस तरह से शिवसेना बीएमसी पर कुंडली मारे बैठी है, उसे वह ‘सेना मुक्त’ कर दिखाएं। अभी शिंदे और ठाकरे गुट में झगड़ा पार्टी के चुनाव चिन्ह तीर-कमान को लेकर गहरा गया है, मामला चुनाव आयोग के पास है। अगर चुनाव आयोग इस चुनाव चिन्ह को ही ‘फ्रीज’ कर देता है तो यह उद्धव कैंप के लिए एक बड़ा झटका होगा। भाजपा बृहन मुंबई नगरपालिका चुनावों की आड़ में अपने 2024 के एजेंडे को भी धार देना चाहती है, चूंकि मुंबई महानगर क्षेत्र की सात नगरपालिकाओं के अंतर्गत आने वाली 10 लोकसभा और 60 विधानसभा सीटें महाराष्ट्र का ट्रेंड सेट करने में एक महती भूमिका निभाती है। यानी महाराष्ट्र में सियासी सर्कस चालू आहे।