’जब से पागल हवाओं ने हर छोटे-बड़े दीयों का काम तमाम किया है
इस आदम के जंगल ने अपना कल इन जुगनुओं के नाम किया है’
सियासत की सीरत ही कुछ ऐसी है कि यहां असल वफादारी भी नैतिक दीवालियापन के अंतःपुर में बेशर्मी से पसरी नज़र आती है। कहां तो चर्चाओं को पंख लगे थे कि भाजपा रामपुर उप चुनाव में मुख्तार अब्बास नकवी को मैदान में उतारने जा रही है। पर अचानक से एक अप्रत्याशित से नाम की घोषणा हो गई, वह नाम था घनश्याम लोधी का, जिन्हें रामपुर की जनता आजम खान का ही आदमी मानती आई है। लोधी आजम की कृपा से ही दो बार के सपा के एमएलसी रह चुके हैं, उनके बारे में यह भी एक प्रचलित धारणा रही है कि वे आजम की हिंदू सेना के सिरमौर रहे हैं। इन्हें कालांतर में आजम के ‘हनुमान’ का भी दर्जा प्राप्त था। सूत्र बताते हैं कि इससे पहले जब एक बंद कमरे में आजम की मुलाकात अखिलेश यादव से हुई तब आजम के दिलो-दिमाग में कुछ और चल रहा था। यह मुलाकात कोई दो घंटे तक चली और जब अखिलेश इस मीटिंग के बाद कमरे से बाहर निकल कर आए तो उन्होंने अपने करीबियों को संकेत दिया कि आजम अपनी पत्नी तंजीम फातिमा को मैदान में उतारेंगे। पर जैसे ही इस खबर ने भगवा फिजाओं में आकार लेना शुरू किया तो आजम के संपर्क में कुछ लोग आए, इसके बाद उनके सुर बदल गए। अखिलेश से बात कर आजम ने अपने एक करीबी आसिम रजा का नाम सुझा दिया, यह कहते हुए कि उनकी शरीके हयात रामपुर से चुनाव नहीं लड़ना चाहतीं। चुनांचे रामपुर में चाहे लोधी जीते या रज़ा जीत का सुख तो आजम को ही मिलेगा। और इन बदली परिस्थितियों में ईडी चाहे लाख आजम के ऊपर नए केस बना ले, आजम की भगवा आस्थाओं का ऐलान तो पहले हो चुका है।