मोदी के नजदीक कैसे आए आजाद

September 04 2022


जयराम रमेश कहते हैं कि जीएनए (गुलाम नबी आजाद) का डीएनए ’मोदी मय’ हो गया है। सूत्रों की मानें तो जब गुलाम नबी राज्यसभा में थे और विपक्ष के नेता थे, तब उनकी अरुण जेटली से गहरी छनती थी, इसके पीछे जेटली की पत्नी डॉली का ‘जम्मू कनेक्शन’ बताया जाता है। यह जेटली ही थे जिन्होंने आजाद से मोदी की सीधी मुलाकात करवाई, वह मुलाकात दोस्ती में बदल गई। मोदी यदा-कदा आजाद को मिलने के लिए बुलाने लगे और उनके दरम्यान एक प्रगाढ़ता बढ़ती गई। यही वजह है कि जब गुलाम नबी राज्यसभा से रिटायर हो रहे थे तो उनकी विदाई भाषण में मोदी ने कहा था-’आपको खाली नहीं बैठने देंगे।’ दरअसल गुलाम नबी कोई जमीन के नेता नहीं, वे हमेशा से ‘ड्राईंग रूम पॉलिटिक्स’ के प्रतीक पुरुषों में शुमार रहे हैं, पर उनकी संगठन दक्षता और विरोधियों से भी उनके मधुर संबंध हमेशा से उनकी ताकत रहे हैं। गुलाम नबी को भाजपा इतना महत्व सिर्फ इसीलिए दे रही है कि आने वाले कुछ समय में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव होने हैं, नए परिसीमन में जम्मू का दायरा बढ़ गया है और कश्मीर का कुछ कम हुआ है। भाजपा की कोशिश है गुलाम नबी की नई पार्टी जम्मू-कश्मीर चुनावों में एक प्रमुख प्लेयर बन कर उभरे, जो एक साथ कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस और महबूबा की पीडीपी में सेंध लगा सके, जिसका फायदा अपरोक्ष तौर पर भाजपा को मिल सके। अभी से कांग्रेस के काफी पूर्व व वर्तमान विधायक और एमएलसी गुलाम नबी का रुख कर रहे हैं इससे निसंदेह भाजपा की संभावनाओं के नए द्वार खुल रहे हैं।

 
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