’चूहे कितने बड़े हो गए हैं, इतने कि
बिल से बाहर निकल आई है उनकी पूंछ
इतना जी भर के कुतरा है देश को
फिर भी ताव दे रही है उनकी मूंछ’
अगले साल आहूत होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए बेहद अहम हैं, सो इसकी तैयारियों में हर दांव आजमाए जा रहे हैं, जीत के पुराने मंत्रों को ठंडे बस्तों से निकालने के बाद उन्हें मांजा और चमकाया जा रहा है। अब सुनने में आया है कि यूपी की सभी 403 विधानसभा सीटों पर भाजपा अपने ‘विस्तारकों’ की नियुक्ति करने जा रही है, जो सीटें सहयोगी दलों मसलन अपना दल (सोनेवाल) जैसी छोटी पार्टियों के लिए छोड़ी जाएंगी, वहां भी सहयोगी दलों की आपसी सहमति से विस्तारकों की नियुक्ति होगी। पार्टी ने यह भी साफ कर दिया है कि विस्तारक बनने के इच्छुक अभ्यर्थी चुनाव नहीं लड़ेंगे। पार्टी के विधायक, सांसद या एमएलसी मौजूदा या रिटायर कोई भी विस्तारक बन सकता है पर जिन्होंने कम से कम 15 से 20 साल पार्टी की सेवा में लगाया हो। कमोबेश इसी तर्ज पर भाजपा 2017 का यूपी विधानसभा का पिछला चुनाव भी लड़ चुकी है। पर ’विस्तारक’ पद्दति के ईजाद का श्रेय संघ को जाता है जो पिछले कई दशकों से इस प्रक्रिया को अपना कर विधानसभा या लोकसभा चुनावों में भाजपा को मजबूती देता रहा है, और वह विस्तारक ही है जो पन्ना प्रमुखों से लेकर पोलिंग बूथ एजेंट तक के सीधे संपर्क में रहता है। जब 2014 में भगवा आभामंडल में मोदी काल का अभ्युदय हुआ तो अमित शाह के नेतृत्व में पार्टी ने यह तय किया था कि देशभर के कोई चार-साढ़े चार हजार विधानसभा सीटों पर भाजपा अपने विस्तारक की नियुक्ति करेगी, पर लगता है संघ को भाजपा का यह आइडिया उतना रास नहीं आया, क्योंकि वह पहले से ही इस पद्दति को अपनाता आया था, लिहाजा पार्टी ने भी संघ से किसी भी प्रकार के तकरार को टालने के लिए अपनी विस्तारक योजना ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया। लेकिन जब से दत्तात्रेय होसाबोले संघ के नंबर दो पद पर आसीन हुए हैं उन्होंने नए विचारों के लिए संघ के खिड़की-दरवाजे खोल दिए हैं, उन्हें लगता है कि अगर भाजपा और संघ सामांतर रूप से ’विस्तारक नीति’ पर काम करें तो इससे जीत की संभावनाओं को और बेहतर आसमां मिलेगा, सो संघ की ओर से हरी झंडी मिलने के बाद भाजपा अपने ’विस्तारक अभियान’ को धार देने में जुट गई है।