बुतपरस्ती की सियासत का नया दौर

October 03 2021


’बुतों से भर गई है बस्तियां, हर तरफ पत्थरों में ढल गए किरदार हैं
किधर देखूं, कहां सिर झुकाऊं, एक सिर है और ये बुत हजार हैं’

वो जमाना और था जब सियासत जिंदा आदमी की इबादत मानी जाती थी, वक्त बदला, सोच बदली और राजनीति का अंदाज बदला। अब तो सियासतदाओं के आदर्श भी पत्थर हो गए हैं और उनके आराध्य भी जैसे पत्थरों में ही ढल गए हैं। यह बीता सप्ताह गवाह है जब ग्रेटर नोएडा के ‘मिहिर भोज बालिका डिग्री कॉलेज’ में गुर्जर सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा के समक्ष लगे शिलापट से गुर्जर शब्द हटने से बवाल मच गया। गुर्जर समाज को यूं भी भाजपा यूपी में अपना परंपरागत वोट बैंक मानती रही है, अभी हालिया दिनों में भी (इस बवाल से पहले) भाजपा का अंदरूनी सर्वे बता रहा था कि 69 फीसदी गुर्जर वोटर भाजपा के समर्थन में हैं। गुर्जर समाज को उम्मीद थी कि जब प्रदेश के मुख्यमंत्री यहां पधार रहे हैं तो वे इस कॉलेज के लिए किसी बड़ी सहायता राशि का ऐलान भी करेंगे, योगी आए जरूर, पर ऐलान स्थगित रहा। 1994 में जब मुलायम सिंह यादव सीएम रहते आए थे तो उन्होंने इस कॉलेज को 20 लाख रूपए दिए थे, कांग्रेस नेता राजेश पायलट 95-96 में आए तो उन्होंने 11 लाख रूपयों की धन राशि दी। जब यूपी में किसान आंदोलन का असर दिखने लगा तो योगी सरकार ने भी सियासी चतुराई दिखाते हुए बुतों की राजनीति को हवा देनी शुरू कर दी। योगी सरकार अलीगढ़ जिले के लोधा में जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर एक विश्वविद्यालय का निर्माण करवा रही है, जिसका शिलान्यास पीएम मोदी के कर कमलों से हुआ, महेंद्र प्रताप को जाट राजा बता कर। जबकि अलीगढ़ से महज़ चंद किलोमीटर के फासले पर मुईसान के किले में लगी राजा की मूर्ति के आसपास मुद्दतों से कोई सफाई भी नहीं हुई है। सनद् रहे कि ये वही राजा महेंद्र प्रताप हैं जिन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाने के लिए अपनी जमीन दे दी, सारी नकदी दे दी। पर कभी खुद को जाट नहीं कहा, अपने को खालिस हिंदुस्तानी बताते रहे, शायद इसीलिए इन्होंने अपना नाम भी पीटर पीर प्रताप रख लिया था। वे जहां भी जाते थे, उनके साथ उनका एक मुस्लिम और एक दलित साथी हमेशा साथ चलता था। 1957 के चुनाव में ये निर्दलीय चुनाव लड़ कर भी अटल बिहारी वाजपेयी की जमानत जब्त करा चुनाव जीते थे। आज सिर्फ उन्हें जाट नेता साबित करने की होड़ मची है। पिछले यूपी चुनाव में राजभर वोटों पर दांव लगाने के लिए भगवा पार्टी ने राजा सुहेलदेव को ढूंढा था, इन्हीं सुहेलदेव की मान्यता पहले पासी नेता के तौर पर थी। गोरखपुर के कुर्मी-सेंथेवार को भी योगी ने अपने पराक्रम से क्षत्रिय साबित कर दिया। इस खेल में सपा कहां पीछे रहने वाली थी, कप्तान यादव की मूर्ति का अनावरण अखिलेश यादव के हाथों हुआ। वहीं प्रदेश के नाराज़ ब्राह्मणों को लुभाने के लिए परशुराम की मूर्ति लगाने का वायदा सपा और बसपा दोनों ही पार्टियां कर रही हैं। यूपी के निषाद वोटों को गोलबंद करने की कोशिशों के तहत उन्नाव में निषादों के बड़े नेता मनोहर लाल की मूर्ति का अनावरण सपा नेता के हाथों हुआ। मनोहर लाल 1993 में मुलायम सरकार में मतस्य पालन मंत्री रह चुके हैं। भले ही निषाद वोटरों को लुभाने के लिए दस्यु सुंदरी फूलन देवी की मूर्ति लगाने की इजाजत प्रशासन ने नहीं दी हो, पर बिहार के मुकेश सहनी ‘विकासशील इंसान पार्टी’ फूलन देवी की मूर्ति लगाने के लिए सतत् प्रयासरत है। जिंदा कौमें पाषाण की मूर्तियों में प्राण-प्रतिष्ठा कर क्या साबित करना चाहती हैं? जाति-समुदाय की नुमाइंदगी को महिमामंडित करने के प्रयासों में जुटी सियासी पार्टियों को राजा महेंद्र प्रताप से भी तो कोई सीख लेनी चाहिए?

 
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