नीतीश की कुर्मी राजनीति के ’रोड मैप’ को अखिलेश की ‘ना’

October 31 2022


बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2024 के आम चुनाव को किंचित बहुत गंभीरता से ले रहे हैं संभावना है कि 24 के चुनाव में नीतीश की जदयू बिहार की 17 लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ेगी, शेष सीटों में 17 सीटें राजद को तो बाकी बची 6 सीटें कांग्रेस और लेफ्ट के हिस्से आ सकती हैं चुनाव लड़ने के लिए। सो, नीतीश के बेहद मुंहलगे संजय झा ने उन्हें सलाह दी है कि ’जदयू को बिहार से बाहर की 15 कुर्मी बाहुल्य सीटों पर और चुनाव लड़ना चाहिए।’ ऐसी सबसे ज्यादा सीटें झा ने यूपी में चिन्हित कर रखी है, इसके अलावा नीतीश का इरादा मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, ओडिशा व गुजरात से भी जदयू उम्मीदवार उतारने का है। सूत्रों की मानें तो नीतीश के विशेष दूत के तौर पर संजय झा लखनऊ पहुंचे और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव से आग्रह किया कि ’वे बस्ती, श्रावस्ती, सीतापुर, मिर्जापुर और बरेली जैसे कुर्मी बहुल जिलों नीतीश के लिए सभाएं रखें।’ अखिलेश ने ध्यानपूर्वक संजय झा की बातों को सुना और कहा-’सोचने का वक्त दीजिए, बताता हूं।’ जब काफी दिनों तक अखिलेश का फोन नहीं आया तो फिर नीतीश के कहने पर तेजस्वी ने अखिलेश को फोन लगाया और उनसे पूछा कि ’इस बारे में आखिर उनकी राय क्या है?’ अखिलेश पहले से भरे बैठे थे, छूटते ही बोले-’इस वक्त हमारी पार्टी में संगठनात्मक चुनाव चल रहे हैं सो, जनवरी से पहले ऐसा कुछ भी कर पाना संभव नहीं होगा। वैसे भी जब मेरी पार्टी बिहार में नहीं घुस रही है तो आप लोग यूपी में क्यों आना चाहते हैं?’ तेजस्वी ने अखिलेश के कहने का मर्म भांप लिया। इस बारे में ममता बनर्जी के भी कुछ ऐसे ही विचार थे। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने काफी टाल-मटोल के बाद कहा कि ’वे समझौते के तहत नीतीश जी के लिए अपनी एक सीट छोड़ सकते हैं।’ मध्य प्रदेश का रीवां भी एक कुर्मी बाहुल्य सीट है, जहां से 1996 में बसपा के एक कुर्मी नेता बुद्दसेन पटेल पहली बार चुनाव जीत कर आए। पर नीतीश के हाथ से यूपी फिसल रहा है जहां बिहार के बाद सबसे ज्यादा कोई 9 प्रतिशत कुर्मी आबादी है। संजय झा को भी उम्मीद है कि वे आज न कल अखिलेश को इसके लिए मना ही लेंगे।

 
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