जीत का श्रेय लेने की होड़, पर खेल बजट नो मोर!

August 28 2021


’गिले-शिकवे सब भुला कर खेले हम जी-जान से
पर हर हुनर में हम पीछे ही रहे बादशाहे हिंदुस्तान से’

हिंदुस्तान में तो मौसम भी अलग-अलग वेष धर कर आते हैं, जिंदगी और मौत का बेरहम खेल खेल कर कोरोना का मौसम अभी-अभी गुज़रा ही था कि खेलों के मौसम ने दस्तक दे दी, तमाम सियासी खेलों को पीछे छोड़ता ओलंपिक आ गया, गाजे-बाजे के शोर में रजत-कांस्यों की खनक ने आकार लेने शुरू कर दिए, ’मोमेंट मार्केटिंग’ के उस्तादों ने भी बदली भंगिमाएं ओढ़ लीं, हर खेल में माहिर इन्होंने भी हमें अपने स्पीकर फोन पर सुनाया-बताया कि इनको हॉकी जैसी ग्लैमर विहीन और गरीब खेल की उतनी ही चिंता है जितनी देश के गरीबों की, कभी वे विराट मुस्कान वाले, सबसे ज्यादा ‘इंडोर्समेंट’ हासिल करने वाले गेंद व बल्ले के माहिर खिलाड़ी की तारीफ में कसीदे पढ़ते नहीं थकते थे, आज उनकी नज़रें इनायत कुश्ती, मुक्केबाजी, भारत्तोलन, हॉकी जैसे खेलों पर हैं। खिलाड़ी अपने बादशाहे ’हुकूमत से बस इतना ही जानना चाहते थे जब सरकार का भरोसा खिलाड़ियों के लिए बाग-बाग हो रहा था तो 2021-22 के खेल बजट में 230.78 करोड़ रूपयों की कटौती क्यों कर दी गई? जब ओलंपिक खेलों के मद्देनजर कोरोना की कलोत छांव से खिलाड़ियों को बचाने के लिए विदेशों में उन्हें पर्सनल ट्रेनर और उनके घरों तक ट्रेनिंग की सुविधाएं पहुंचाई जा रही थीं वैसे में खेल मंत्रालय ने अपने फ्लैगशिप प्रोग्राम ’खेलो इंडिया’ के पिछले वर्ष (2020-21) के बजट 890.42 करोड़ रूपयों को कुतर कर 660.14 करोड़ रूपए क्यों कर दिए, जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 230 करोड़ कम थे। राष्ट्रीय खेल महासंघों को सहायता के रूप में दी जाने वाली राशि को भले ही पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 35 करोड़ की बढ़ोत्तरी के साथ 280 करोड़ रूपए कर दिया गया हो, लेकिन एथलीटों के प्रोत्साहन पर खर्च होने वाली राशि को 17 करोड़ रूपए घटा कर मात्र 53 करोड़ रूपए कर दिया गया। फिर भी ओलंपिक खेलों से उपजी आंशिक आशा की ताबड़तोड़ ‘मोमेंट मार्केटिंग’ की होड़ लगी है, देश के कर्णधारों के श्रेयमयी ढोंग तो देखिए।

 
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