’हमारे हौसले कम न थे, रगों में दौड़ते खून में भी रफ्तार थी
भले कितनी ही कुंद हमारे तलवारों की धार थी
दुश्मन था सामने और दिख रही हमारी हार थी
सेनापति, हम न छोड़ते रणभूमि, सुनाई देती जो तेरी हुंकार थी’
हार अपने साथ अक्सर अवरूद्ध आस्थाओं के बोझ सिर पर उठाए चलती है, इसका साफ नज़ारा नई दिल्ली में आहूत कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में देखने को मिला, जहां वक्ताओं के ऊपर बोलते सन्नाटे ज्यादा हावी रहे। बैठक कोई पांच घंटे चली पर गांधी परिवार के मुखर समर्थन में बमुश्किल पांच लोग ही सामने आए। जबकि मीटिंग में कांग्रेस के कोई 52 नेता शामिल थे। यह सोनिया गांधी का वही पुराना स्वांग था जब उन्होंने अपने इस्तीफे की पेशकश करते हुए ऐलान किया कि ‘गांधी परिवार कांग्रेस की रक्षा के लिए कोई भी त्याग कर सकता है, वह किसी भी हद तक जा सकता है।’ आमतौर पर सोनिया के कहे का अक्सर बैठक में व्यापक असर देखने को मिलता था, समवेत स्वरों में ‘नहीं-नहीं’, फिर ‘सोनिया गांधी जिंदाबाद’ के नारे लगते थे। पर इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ। सिर्फ पांच नेता सोनिया के समर्थन में खड़े हुए। इसके बाद राहुल गांधी की बारी थी, केसी वेणुगोपाल ने राहुल के पक्ष में समां बांधने के लिहाज से नारे लगाए-’राहुल लाओ, देश बचाओ।’ पर इस नारे को कोई समर्थन नहीं मिला, सिवा उन चुप सन्नाटों के जिसकी गूंज बहुत ऊंची थी। यही हाल प्रियंका गांधी का रहा, यूपी में उनके ’फ्लॉप शो’ की कीमत उन्हें चुकानी पड़ी, पिछली दफे जब वे सीडब्ल्यूसी की बैठक में बोली थीं तो तालियों की गड़गड़ाहट के बीच बोली थीं, इस दफे हर तरफ असहज सन्नाटा पसरा था। राहुल के बोलने के बाद जिन पांच लोगों ने उनके पक्ष में मोर्चा संभाला, वे थे भूपेश बघेल, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री जिन्होंने इस दफे प्रियंका के कहने पर यूपी में पानी की तरह पैसा बहाया, अपनी गद्दी की सलामती के लिए कृत संकल्प दिखे जिस पर टीएस सिंहदेव टकटकी लगाए देख रहे हैं। कमलनाथ, जिन्हें अगली बार मध्य प्रदेश का सीएम बनना है। अषोक गहलोत जिन्हें अपनी सीएम की कुर्सी बरकरार रखनी है। मल्लिकार्जुन खड़गे, जिनकी नज़र कर्नाटक के आने वाले चुनाव पर हैं और लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी, जिनका अब पश्चिम बंगाल में भी कुछ नहीं बचा है। इस बैठक में कांग्रेस के अंसतुष्ट गुट जी-23 के सिर्फ तीन नेता शामिल हुए थे-गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा और मुकुल वासनिक। बैठक में आने से पहले कमलनाथ ने बकायदा गुलाब नबी से बात की और गुलाम नबी ने सोनिया से बात कर कहा कि ’मैंने कभी आपका इस्तीफा नहीं चाहा है।’ जब गुलाब नबी को बोलने का मौका मिला तो वे अपनी रौ में बोले। उन्होंने अपना बोलना खत्म किया तो कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता उनके पास आए, उनकी तारीफ की और कहा कि ’आप बहुत अच्छा बोले।’ जाहिर है इस पूरी बैठक में गांधी परिवार बेहद असहज महसूस कर रहा था।