’तू सूरज है तो रौशनी बन कर बिखर क्यों नहीं जाता
शाम ढलते ही लौट कर अपने घर क्यों नहीं जाता’
राहुल गांधी को नेता साबित करने की मशक्कत जारी है, उनके इकबाल के ऐलान से सियासी रंग मंच गुंजायमान है। गाहे-बगाहे ऐसा कुछ दिख ही जाता है जब वे मुनादी करते अपने हरकारों से घिरे नज़र आते हैं। पिछले दिनों जयपुर में आयोजित हुई कांग्रेस की ‘महंगाई विरोधी रैली’ में भी यही मंजर दिखा। विशालकाय मंच के बैकड्राप में बायीं ओर सोनिया गांधी की भव्य आकृति चस्पां थी, वह प्रियंका के साथ मंच पर भी विराजमान थीं, पर कांग्रेस के उत्साही कार्यकर्ता उनके उद्बोधन की बाट जोहते रहे, पर वह नहीं बोलीं, मौन रह कर भी उन्होंने अपने पुत्र को नैतिक बल और समर्थन दिया। प्रियंका को रैली में ज्यादा महत्व नहीं दिया गया, वह जितना बोलीं, शायद सचिन पायलट ने भी उतना ही बोला होगा। राहुल हिंदुत्व और हिंदूवादी के अपने जुमले में ही बेतरह उलझ गए, वे जो बोले या बोलना चाहते थे कायदे से ज्यादातर लोगों के पल्ले उनकी बात नहीं पड़ी। जब वे रैली में अपना ओजपूर्ण भाषण देकर आए तो सोनिया ने बकायदा उनकी पीठ थपथपा कर उन्हें शाबाशी दी, मानो ये ऐलान कर रही हों कि पार्टी के असली नेता राहुल गांधी ही हैं। दरअसल सोनिया का यह आचरण पार्टी के उन नेताओं को एक मैसेज देने का ही उपक्रम था, जो अब भी राहुल की जगह प्रियंका की नेतृत्व क्षमता के ज्यादा मुरीद हैं। प्रियंका के निजी सचिव संदीप सिंह काफी पहले से इन बातों की तैयारियों में जुटे थे कि इन पांच राज्यों के चुनाव में हर चुनावी प्रदेश में प्रियंका की ज्यादा से ज्यादा सभाएं लगाई जाएं, गोवा में प्रियंका की चुनावी सभा इसी सोच और इस कड़ी का एक हिस्सा थी, प्रियंका की ताबड़-तोड़ सभाओं का मैप बन चुका था, पर सोनिया ने प्रियंका वफादारों के इस मंसूबे में पलीता लगा दिया, यहां तक कि प्रियंका की गढ़चिरौली की रैली भी रद्द कर दी गई, महीनों पूर्व से जिसकी तैयारी की गई थी। सूत्रों की मानें तो सोनिया ने प्रियंका को तलब कर उनसे दो-टूक कह दिया है कि उन्हें अपनी उद्दात राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं पर विराम लगानी होगी और अपने आपको सिर्फ यूपी तक ही सीमित रखना होगा, यूपी जहां कांग्रेस के लिए षायद ही थोड़ी जमीन बची है।