’आना-जाना तो लगा रहता है, यहां कौन किसी का सगा रहता है
लिख कर रख लो पर्चियां, यहां हर किसी के पहलू में दगा रहता है’
सियासत में जब ठहरी हुई खामोशियां बवंडर बन डराने लग जाएं, नई संभावनाएं जब सांकल हटाने लग जाए और कमरे में लगा कोई पुराना दर्पण आपके चेहरे को नया दिखाने लग जाए तो समझिए कुछ नया एकदम घटने वाला है, वही जो अभी-अभी बिहार में हुआ है, जिसने भगवा आस्थाओं की चूलें हिला दी हैं। जदयू और राजद जब फिर से साथ आए तो विपक्ष की धौंकनी चलती सांसों को जैसे एक नया पुनर्जीवन मिला हो। तेजस्वी राजद कोटे के संभावित मंत्रियों की लिस्ट लेकर दिल्ली आए और सहमति की आखिरी मुहर के लिए अपने पिता लालू यादव से मिले। मिले तो वे सोनिया-राहुल और येचुरी से भी। कहते हैं इसके बाद बीमार पड़े लालू ने नीतीश से फोन पर एक लंबी बात की। बातचीत का उन्वान था कि ’अब वक्त आ गया है कि राजद और जदयू का विलय हो, नीतीश दिल्ली की राजनीति करें, तेजस्वी पटना का मोर्चा संभाले।’ लालू का नीतीश से दो टूक कहना था-’यदि 2024 में भाजपा को रोकना है तो पुराने जनता दल को जिंदा करना ही होगा, आप अखिलेश यादव, नवीन पटनायक, देवेगौड़ा और चंद्रशेखर राव से बात करो, सब मिल जाएं तो 24 में भाजपा के लिए दिल्ली दूर हो जाएगी।’ नीतीश के हालिया बयान भी इस बात की गवाही देते हैं कि वे विपक्षी एका के नए चैंपियन बन कर सामने आना चाहते हैं।