’निकले हो जिस अनजान सफर पर मुमकिन है कि वहां बहुत हो अंधेरा
मेरी ये आंखें, ये चिराग रख लो और रख लो मेरे हिस्से का यह सवेरा’
उद्धव ठाकरे सियासत की उस अबूझ चाल से धोखा खा गए, उनके एक बहुत पुराने सहयोगी हैं मिलिंद नार्वेकर, जो कोई तीन दशकों से उद्धव के साथ बने हुए हैं, उनके निजी सहायक होने के बावजूद नार्वेकर उद्धव के राजनैतिक सलाहकारों में शुमार होते थे। जब महाराष्ट्र में नई-नई महाविकास अघाड़ी की सरकार बनी तो सब जानते हैं कि उसमें नार्वेकर की तूती बोलती थी। पर जब उद्धव बीमार पड़े और प्रशासनिक कार्यों में उनकी सक्रियता किंचित कम हो गई तो शिवसेना के सियासी फलक पर धूमकेतु सा उभरे संजय राउत, जिनकी उद्धव की पत्नी रश्मि ठाकरे से गहरी छनती है। फिर सीएम ऑफिस के महत्वपूर्ण फैसलों पर राउत और रश्मि की छाप दिखने लगी, ये दोनों बहुत पॉवरफुल हो गए, और कायदे से इस जोड़ी ने नार्वेकर को साइडलाइन कर दिया। नार्वेकर अपने परिवार के लिए जुहू इलाके में एक अपार्टमेंट बनाना चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने उद्धव से मदद मांगी थी। और जब शिवसेना कोटे से राज्यसभा की दो सीट भरने का मौका आया तो नार्वेकर की इच्छा थी कि इसमें से एक सीट पर उन्हें ऊपरी सदन में जाने का मौका मिले, पर उद्धव ने अपने इस सबसे करीबी व्यक्ति की भावनाओं को अनसुना कर संजय राउत और प्रियंका चतुर्वेदी को राज्यसभा में भेज दिया। कहते हैं नार्वेकर की दोस्ती भाजपा के एक बिजनेसमैन नेता से थी जिन्हें देवेंद्र फड़णवीस का बेहद करीबी माना जाता है। सूत्रों की मानें तो भाजपा के उसी नेता के घर पर फड़णवीस और नार्वेकर की एक अहम मुलाकात हुई, कहते हैं कि इसके बाद इन मुलाकातों के सिलसिले बढ़े तो फड़णवीस के हाथ ठाकरे और राउत से जुड़े कई महत्वपूर्ण दस्तावेज हाथ लग गए। इसके बाद ही उद्धव और राउत को घेरने की भगवा व्यूह रचनाओं ने आकर लेना शुरू कर दिया और इसके सूत्रधार बने एकनाथ शिंदे। सूत्रों की मानें तो आज की तारीख में उद्धव ठाकरे चहुंओर से इतना घिर चुके हैं कि वे भाजपा की ओर फिर से दोस्ती का हाथ भी बढ़ा सकते हैं।