कोऑपरेटिव के शहंशाह क्यों हैं शाह

October 03 2021


’माज़ी पर लिखी दास्तां में नहीं है सीरत मेरी
टूटे हुए आइनों से क्या पूछते हो सूरत मेरी’

संघ और भाजपा दोनों की निगाहें सहकारिता की जमीन पर सियासत के नए बीजारोपण पर लगी हैं, इसी हफ्ते नागपुर में संपन्न हुए अपने दो दिवसीय मंथन बैठक में संघ सहकारिता आंदोलन को धार देने के लिए अपने एक आनुषांगिक संगठन सहकार भारती को नई ऊर्जा से लबरेज करने की बात करता है, वहीं मोदी कैबिनेट के नए नवेले कोऑपरेटिव मंत्री अमित शाह सहकारिता के क्षेत्र के अपने पुराने अनुभवों को भगवा जमीन सिंचित करने में लगा रहे हैं। महाराष्ट्र में सहकारिता आंदोलन के ध्वजवाहक शरद पवार से लेकर इस आंदोलन के जनक राज्यों में शुमार होने वाले केरल के नेताओं से भी शाह अपना राब्ता बढ़ाने में जुटे हैं। अभी हाल में ही यूपी के डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव के चुनाव शाह ने अपनी देखरेख में करवाए, जहां काफी हद तक भगवा वर्चस्व कायम हुआ है। सूत्रों की मानें तो शाह का अगला निशाना बिहार है जहां के कोऑपरेटिव पर काफी हद तक राजद का कब्जा है। यूं भी शाह का कोऑपरेटिव के साथ बेहद पुराना रिश्ता रहा है। नब्बे के शुरूआती दशक में जब अमित शाह भाजपा के एक मामूली से कार्यकर्ता थे और उनकी पहचान बस इतनी थी कि वे भाजपा के शीर्ष पुरूष लाल कृष्ण अडवानी के चुनाव एजेंट हुआ करते थे। यह वह दौर था जब कुशाभाऊ ठाकरे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। ठाकरे को शाह के संगठन कौशल पर इतना भरोसा था कि उन्होंने अमित शाह को भाजपा के सहकारिता प्रकोष्ठ का राष्ट्रीय संयोजक नियुक्त कर दिया। यह वह वक्त था जब गुजरात के तमाम कोऑपरेटिव पर कांग्रेस का कब्जा था, यह उसी दौर की बात है जब ‘माधवपुरा मार्केटाइल कोऑपरेटिव बैंक’ डूबने की कगार पर था, और गुजरात के सबसे बड़े कोऑपरेटिव बैंक में शुमार होने वाला ‘अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक’ 36 करोड़ रूपए के घाटे में चल रहा था। शाह ने तब दिल्ली पहुंच कर अडवानी से गुहार लगाई कि अगर अहमदाबाद बैंक की बागडोर उन्हें सौंप दी गई तो वे इस बैंक को घाटे से उबार लेंगे। इसके तुरंत बाद ही 1999 में इस बैंक की बागडोर शाह को सौंप दी गई, इत्तफाक देखिए कि शाह ने महज़ एक साल के अंदर इस बैंक को 27 करोड़ रूपयों के मुनाफे में ला दिया। आज गुजरात के 22 कोऑपरेटिव बैंकों में से 20 पर भाजपा का वर्चस्व है। पीएम मोदी की सियासी बाजीगरियों का ही यह एक वृहतर आयाम था कि उन्होंने अपने नवगठित सहकारिता मंत्रालय की बागडोर अपने सबसे भरोसेमंद शाह को सौंप दी।

 
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