’मिट्टी में फ़ना होकर भी तू इत्र सा महकता है
रोज जूड़े में गुलाब लगाने की यह सजा है’
उनकी सियासत का अंदाज भी निराला है और उनकी सोच भी उनकी रणनीतियों के स्वांग में रची-बसी है, सो प्रकाश पर्व के ऐन मौके पर जब पीएम मोदी ने तुरूप का इक्का चलते हुए तीनों कृषि बिल वापिस लेने का यूं अचानक ऐलान कर दिया तो देश के एक तबके ने इसे उनका ’मास्टर स्ट्रोक’ माना, वहीं उनके राजनैतिक विरोधियों को उनका यह एक देर से लिया गया फैसला लगा। सबसे हैरानी की बात कि पीएम कुछ ऐसा फरमान सुनाने जा रहे हैं इस बात की भनक पार्टी जनों और सरकार के मंत्रियों को भी नहीं थी। जाहिरा तौर पर तो ऐसा दिखा कि पीएम ने इस अहम घोषणा से पहले न तो किसान नेताओं से बात की और न ही उनके संगठनों से। पर विश्वस्त सूत्र खुलासा करते हैं कि पीएम ने लगभग साल भर से चल रहे किसान आंदोलन के समाधान के लिए सिखों की सुप्रीम संस्था श्री अकाल तख्त साहिब से बात की और उन्हें अपने इस अहम ऐलान के लिए नैतिक बल भी वहीं से हासिल हुआ। पीएम की इस घोषणा के बाद श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह का भी यह महत्वपूर्ण बयान सामने आया कि ‘पीएम के इस फैसले से भविष्य में होने वाला नुकसान टल गया है।’ कहते हैं पीएम की इस रणनीति को अमलीजामा पहनाने में कैप्टन अमरिंदर सिंह की भी एक अहम भूमिका रही, जिन्होंने इस बाबत किसान नेता गुरनाम सिंह चढू़नी को अपने भरोसे में लिया और यह आपस में तय हुआ कि एक बार पीएम का ऐलान हो गया तो फिर धीरे-धीरे आंदोलन स्थल से किसान अपने-अपने घरों को वापिस लौट जाएंगे, क्योंकि भाजपा द्वारा कराए गए एक जनमत सर्वेक्षण में यह सुझाव प्रमुखता से उभर कर सामने आया था कि अगर आंदोलनकर्मी किसान आंदोलन स्थल खाली कर देंगे तो इन हालिया चुनावों में भाजपा को हो रहे नुकसान की कुछ भरपाई हो सकती है। लेकिन माना जा रहा है कि रालोद के जयंत चौधरी और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव लगातार राकेश टिकैत के संपर्क में हैं, पंजाब के नए नवेले मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी भी हर मद से आंदोलन की भरपूर मदद कर रहे हैं। सो, ऐन वक्त राकेश टिकैत पलट गए, टिकैत अड़ गए कि जब तक संसद में तीनों कृषि कानून निरस्त नहीं हो जाते और एमएसपी पर वैधानिक गारंटी के मामले में सरकार का नज़रिया साफ नहीं हो जाता तब तक किसान आंदोलन स्थल नहीं छोड़ेंगे, सो इसके बाद पंजाब के किसान भी वापिस नहीं गए।