क्षमा करना प्रभु!

February 23 2015


सुरेश प्रभु से प्रधानमंत्री को जो उम्मीदें थीं, प्रभु उस पर खरे उतरते नहीं दिख रहे। नहीं तो प्रभु को जिस धूम-धड़ाके के साथ मंत्री बनाया गया था, उसके राजनैतिक संदेश किसी से छुपे नहीं रह गए थे, सुबह उन्हें भाजपा की सदस्यता दिलवाई गई और वे शाम तक रेल भवन में आसीन थे। पर हालिया घटनाक्रम बताते हैं कि प्रभु अब न तो मोदी के नाक के बाल रह गए हैं और न ही प्रधानमंत्री ने उन्हें नाक का सवाल बना रखा था। पीएमओ से जुड़े सूत्र बताते हैं कि मोदी की प्रभु से नाराजगी इस बात को लेकर है कि बतौर रेल मंत्री वे ‘डिलिवरी’ नहीं कर पा रहे हैं, कहते हैं कि मंत्री बनने से पहले उन्होंने प्रधानमंत्री से वादा किया था कि वे रेल सेक्टर में 1 लाख करोड़ का विदेशी निवेश लेकर आएंगे। पर यह पूरा मामला सिफर साबित हुआ। यहां तक कि सुधार की पटरी पर सरपट भाग रही भारतीय रेल भी बीते दिनों पटरी से उतरती चली गई, ऐसे में यह सवाल अहम हो जाता है कि क्या बजट सत्र के बाद होने वाले मोदी कैबिनेट के संभावित फेरबदल में प्रभु का मंत्रालय बदला जा सकता है?

 
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