भारत के असली रत्न

December 13 2014


मोदी सरकार अपने हर बड़े फैसले में जन आकांक्षाओं को उसमें शामिल करने के प्रयास में जुटी दिखती है, ताजा मसला भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित करने से जुड़ा है। समझा जाता है कि अटल जी के 90वें जन्मदिवस के मौके पर इस आशय की घोषणा हो सकती है। पर सत्ता के गलियारों में एक और नाम की बहुत चर्चा है, वह है सुलभ स्वच्छता आंदोलन के जनक डा. विन्देश्वर पाठक का, जिन्हें भारत सरकार बहुत पहले ही 1991 में ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित कर चुकी है। इस बात के भी काफी कयास लगाए जा रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी का ‘स्वच्छ भारत अभियान’ भी कहीं न कहीं डा. पाठक के सुलभ आंदोलन से अभिप्रेरित है। ‘भारत रत्न’ के लिए डा. पाठक का नाम सर्वप्रथम सन् 2012 के उत्रार्द्ध में प्रकाश में आया, जब केंद्र में यूपीए-दो की सरकार थी, सूत्र बताते हैं कि तब तत्कालीन गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन हुआ था, उस कमेटी में शिंदे के अलावा विलासराव देशमुख, एस.एम.कृष्णा जैसे नेता भी शामिल थे। उक्त कमेटी ने डा. पाठक के नाम का प्रस्ताव किया था, और जब यह मसला तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास पहुंचा तो उन्होंने कथित रूप से यह कहा कि चूंकि वे सुलभ से ‘ऑनेस्ट मैन ऑफ द् ईयर’ का अवार्ड ग्रहण कर चुके हैं, चुनांचे उनका (डा. पाठक का) नाम लेना ठीक नहीं रहेगा। समझा जाता है कि तब मनमोहन ने सोनिया गांधी से यह भी कहा कि चूंकि डा. पाठक का नाम नोबल शांति पुरस्कार के लिए चल रहा है, सो एक बार उन्हें नोबल मिल जाता है, तो ‘भारत रत्न’ के लिए उनके नाम की सहज घोषणा हो सकती है। विश्वस्त सूत्र तो यह भी दावा करते हैं कि उस वक्त स्वयं मनमोहन की नजर ‘भारत रत्न’ सम्मान पर टिकी थी। सूत्र बताते हैं कि तब उन्होंने अपने खास विश्वस्त मोंटेक सिंह अहलूवालिया के मार्फ्त सोनिया को यह संदेशा भी भिजवाया था, पर सोनिया ने इस मामले में चुप्पी साध ली। सुलभ ने अटल बिहारी वाजपेयी को ‘ऑनेस्ट मैन ऑफ द् ईयर’ अवार्ड देने की घोषणा तब की थी जब वाजपेयी नेता प्रतिपक्ष थे, और प्रधानमंत्री बनने के बाद वाजपेयी ने इस पुरस्कार को सहर्ष स्वीकार भी किया। डा. पाठक की उनके टू-पिट-पोर फ्लश तकनीक वाले सुलभ शौचालय के अन्वेषण, मैला ढोने के अमानवीय कार्य से जुड़े स्कैवेंजर्स के पुनर्वासन और वृंदावन, वाराणसी व उत्तराखंड की विधवा औरतों को एक नया जीवन और एक नया मायने देने के लिए देश-विदेश में काफी सराहना भी हुई है और समझा जाता है कि लगातार उनका नाम नोबल शांति पुरस्कार के लिए भी चल रहा है। सनद रहे कि ‘भारत रत्न’ की प्रस्तावना प्रधानमंत्री स्वयं राष्ट्रपति से करते हैं और प्रति वर्ष ज्यादा से ज्यादा 3 लोगों को ही यह सम्मान दिया जा सकता है। सन् 2014 के ‘भारत रत्न’ सम्मान के लिए वाजपेयी और डा. पाठक के अलावा सुभाष चंद्र बोस और कांशी राम के नाम की भी चर्चा है।

 
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