महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे का राज-काज कतई नहीं सुहा रहा। सो, यदा-कदा वे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और संघ के कान उद्धव के खिलाफ भरते ही रहते हैं। जिस तरह महाराष्ट्र विधान परिषद के चुनाव के पेंचोखम को वहां के माननीय ने उलझा दिया था कि फड़नवीस को लगा कि अगर उद्धव विधान परिषद में चुन कर आ नहीं पाएं तो उन्हें अपनी गद्दी छोड़नी ही पड़ सकती है। जब उद्धव को हर तरफ हाथ पैर मार कर
कोई रास्ता नहीं सूझा तो उन्होंने सीधे पीएम को फोन लगा कर बतिया लिया और पीएम के चाहने पर आनन-फानन में वहां चुनाव की अधिसूचना जारी हो गई और वे चुन कर विधान परिषद में पहुंच भी गए। सूत्रों की मानें तो एक बार मुंह की खाने के बाद फड़नवीस ने भगवा शीर्ष को एक नायाब आइडिया दिया कि ’123 साल पुराने एपेडमिक डिज़ीज एक्ट 1897’ को कुछ रंग-रोगन के बाद महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और दिल्ली में लागू किया जा सकता है जहां कोरोना
के मामले तेजी से पैर पसार रहे हैं। सनद रहे कि 1897 में मुंबई में ’ब्यूबोनिक प्लेग’ फैलने के बाद इसकी रोकथाम के लिए यह एक्ट बनाया गया था। इससे फड़नवीस का आशय था कि केंद्र सरकार इस एक्ट का सहारा लेकर राज्यों को शक्तिविहीन कर वहां राज-काज चलाने का जिम्मा खुद संभाल ले। उसके बाद जब कानूनविदों से इस बारे में राय ली गई तो ज्ञात हुआ कि इस एक्ट के तहत केंद्र सरकार राज्यों के संपूर्ण अधिकारों का अधिग्रहण नहीं कर सकती, बल्कि वह
सिर्फ इस बीमारी की रोकथाम हेतु जरूरी कदम उठा सकती है, यानी केंद्र का दखल सिर्फ स्वास्थ्य संबंधी नीतिगत फैसलों में ही हो सकता है। किसी आसन्न संकट की आहटों को भांपते दिल्ली सरकार ने फौरन अपने यहां ’दिल्ली एपेडमिक 2020’ और महाराष्ट्र सरकार ने ’कोविड-19 रेग्यूलेशन 2020’ लागू कर दिया। वैसे भी इस बात की संभावना अभी शेष है कि अगर कोई राज्य सरकार ’एपेडमिक एक्ट’ को ठीक से बहाल नहीं करती है तो उस सरकार को बर्खास्त करने
का अधिकार केंद्र सरकार के पास है। पर ये कानूनी पेंचोखम किंचित उलझे हुए हैं।