क्या सख्त कदम उठा सकती है सरकार?

December 13 2020


जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और किसान संगठनों में बातचीत के बाद सहमति नहीं बन पाई तो सरकार के कुछ मंत्रिगण सख्त कदम उठाए जाने की वकालत करने लगे। सूत्र बताते हैं कि कई मंत्री इस राय के भी थे कि क्यों नहीं शाहीन बाग मॉडल को फॉलो कर किसानों को दिल्ली से दूर खदेड़ दिया जाए, पैरा मिलिट्री फोर्सेस की मदद लेकर। सूत्र बताते हैं कि इस बारे में खुफिया एजेंसियों का इनपुट भी मांगा गया। एजेंसियों ने सरकार को सतर्क करते हुए कहा कि ऐसे सख्त कदम उठाने का समय चला गया है, इससे माहौल अस्थिर होगा और हिंसा फैल सकती है। वैसे भी रोज-ब-रोज किसान बड़ी संख्या में दिल्ली की ओर कूच रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि जब केंद्र सरकार और किसान संगठन में बात नहीं बन रही थी तो सरकार की ओर से उन्हें ऐसे भी संकेत दिए गए कि अगर किसान टस से
मस नहीं हुए तो कृषि बिल का यह मामला अदालत में भी जा सकता है, जहां इसके निपटारे में वर्षों लग सकते हैं। सो, अब तो सरकार भी यह मान कर चल रही है कि रास्ता सिर्फ बातचीत से ही निकल सकता है, लिहाजा सरकार अब अपनी ओर से फराखदिली भी दिखाना चाहती है और यह भी बताना चाहती है कि वह किसानों की कितनी बड़ी हितैषी है। संघ भी सरकार के कंधें से कंधा मिला कर इस आंदोलन की धार कुंद करने में जुटा है। पहले संघ ने अपने दोनों आनुषांगिक संगठनों पर दबाव डाल कर उन्हें कृषि बिल पर सरकार के पक्ष से रू-ब-रू कराया, साथ एक नए किसान संगठन की नींव भी डाल दी गई है, इस संगठन को शुरू करने वाला संघ का एक पुराना स्वयंसेवक है, जो संघ के एक प्रमुख नेता डॉ. कृष्ण गोपाल के बेहद करीबी बताया जाता है, अब यह नया संगठन संघ के
आनुषांगिक अंग भारतीय किसान संघ के समक्ष एक महती चुनौती उपस्थित कर सकता है।

 
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