संघ के खेमे में आने की होड़ |
April 16 2018 |
बंद कोठरी के दरवाजे खुल गए हैं, बोसीदा हवाओं में नई खिड़कियों के गंध घुल गए हैं। संघ और उनके कर्णधारों को भली भांति इस बात का इल्म हो गया है कि अगर देष की युवा आबादी में अपनी पैठ बनानी है तो सांस्कृतिक उपनेषवाद के नए मिथक गढ़ने होंगे, संवाद और विचारों को नए पन का लिबास पहनाना होगा, षायद यही वजह थी कि पिछले कुछ वर्शों में संघ ने सिनेमा, संगीत व रंगमंच के लिए अपने दरवाजे खोल दिए। पिछले कुछ दिनों में संघ की प्रेरणा पाकर दो ऐसे फिल्म फेस्टिवल आयोजित किए गए, जिसमें शामिल हुई फिल्मों में भारतीय संस्कृति और एक नवराष्ट्रवाद की झलक देखी गई। यह पहल सिनेमाई फलक को नापने की शुरूआत भर थी। सूत्र बताते हैं कि अब देशभर में भगवा विचारों से अभिप्रेरित फिल्मोत्सवों की बाढ़ आने वाली है, और कई बड़े फिल्मकार, एक्टर व फाइनेंसर नदी की इस भगवा उफान में बहने को तैयार हैं। पिछले वर्ष संघ ने प्रयोग के तौर पर एक प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी थी। इस फिल्म का नाम था-’एक थी रानी ऐसी भी।’ इस फिल्म को गुल बहार सिंह ने निर्देषित किया था और हेमा मालिनी ने इस फिल्म में दिवंगत भाजपा नेत्री विजया राजे सिंधिया का किरदार निभाया था। कहना न होगा कि यह फिल्म राजमाता सिंधिया के ऊपर बनी एक बॉयोपिक थी। इसको लिखने का श्रेय गोवा की मौजूदा गवर्नर मृदुला सिन्हा को जाता है, जिन्होंने राजमाता की जिंदगी के विभिन्न रंगों को समेटते हुए एक उपन्यास लिखा- ‘राजपथ से लोकपथ पर।’ इसी उपन्यास को आधार बनाकर इस फिल्म की पटकथा लिखी गई। भगवा विचारों की आग में तपने के लिए और फिर कुंदन बन कर निखरने के लिए अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार, अजय देवगन, कंगना रणौत, प्रिंटी जिंटा, अुर्जन रामपाल जैसे सितारे, सोनू निगम व अभिजीत जैसे सिंगर, सुभाश घई व मधुर भंडारकर जैसे बड़े निर्देषक पलक पांवड़े बिछाए बैठे हैं। इन्होंने समय से समय का रुख भांप लिया है। |
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