कल की बात हुई कलम

October 25 2017


दिल्ली के एक बड़े मीडिया हाऊस की मालकिन को बमुश्किल प्रधानमंत्री से मिलने का वक्त मिल पाया, दरअसल उन्हें अपने इस अंग्रेजी अखबार के समिट में प्रधानमंत्री को आमंत्रित करना था। सूत्र बताते हैं कि पीएम की भंगिमाओं से इस बात के साफ संकेत मिल रहे थे कि वे अखबार की संपादकीय नीति को लेकर खुश नहीं हैं। दरअसल इस अखबार ने एक मुहिम चला रखी थी कि भाजपा सरकार के गठन के बाद किन जगहों पर सांप्रदायिक तनाव बढ़े हैं और बात दंगों तक पहुंची है। अखबार इन घटनाओं को एक ग्राफ के माध्यम से दिखने की कोशिश कर रहा था। कहते हैं पीएमओ की ओर से अखबार मालकिन को यह साफ संदेश दिया गया कि अखबार के कार्यक्रम में पीएम का जाना तब तक संभव नहीं हो पाएगा जब तक अखबार के शीर्ष पर वे वाम झुकावों वाले संपादक महोदय विराजमान हैं, अखबार को उन्हें चलता करना ही होगा। सनद रहे कि यह संपादक अमेरिका में एक अच्छी नौकरी पर बहाल थे, अखबार प्रबंधन उन्हें गाजे-बाजे के साथ दिल्ली लेकर आया, लुटियंस जोन में एक आलीषान घर उन्हें रहने को दिया गया, उन्हें सफर करने के लिए एक चमचमाती मर्सीडिज बेंज दी गई थी। अखबार प्रबंधन चाहता था कि संपादक महोदय को कम से कम दिसंबर तक नौकरी पर रहने दिया जाए, ताकि अगले संपादक के कार्यभार ग्रहण करने तक अखबार का कारोबार सुचारू रूप से चल सके। पर फरमान आते ही आनन-फानन में संपादक महोदय की विदाई कर दी गई। इतना ही नहीं देश के एक प्रमुख आर्थिक अंग्रेजी दैनिक से तीन प्रमुख वरिष्ठ पत्रकारों की छुट्टी करनी पड़ी, क्योंकि उनका लेखन दिल्ली के निजाम को रास नहीं आ रहा था। कभी मीडिया के कहने पर अशोक रोड चला करता था, आज अशोक रोड देश की मीडिया को चला रहा है।

 
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