’कलम अगर खामोश हो तो, आतुर शब्दों की बेबसी समझिए
शब्द अब बिकते कहां हैं, खरीदे भी नहीं जाते
यूं ही मुरझा जाते हैं, बंद मुख के अंदर’
जातियों को साधने की बाजीगरी में भाजपा का कोई जवाब नहीं, अबतलक भगवा रणनीतिकार सोशल इंजीनियरिंग के बेताज बादशाह साबित हुए हैं, पर यह भगवा कारवां जब पश्चिमी यूपी पहुंचता है तो वहां उससे बड़ी चूक हो जाती है। खतौली उप चुनाव जीतने के लिए जयंत चौधरी ने अपने स्वर्गीय दादा चौधरी चरण सिंह के ’मजग’(मुस्लिम, जाट व गुर्जर) फार्मूले पर दांव लगाया था और यह सीट अपनी झोली में कर ली थी। अभी हाल में संपन्न हुए यूपी के जिला पंचायतों के चुनाव में भले ही जाट व गुर्जर जातियों ने मिल कर भाजपा के पक्ष में अलख जगाया हो पर जब जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने की बारी आई तो इस भगवा काल में जाटों ने मैदान मार लिया, लगभग 80-90 फीसदी जिलों में जाट अध्यक्ष बना दिए गए, उन जिलों में भी जाटों को प्रमुखता दी गई जो गुर्जर बहुल्य इलाके थे, बताया जाता है कि इस बात को लेकर गुर्जर समुदाय में खासा रोष है। वहीं दूसरी ओर भाजपा का फोकस यूपी की उन 14 सीटों पर है जिसे 2019 के लोकसभा चुनाव में उसने गंवा दिया। भाजपा ने केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया है जो इस बात की जमीनी पड़ताल में जुटी है कि आखिरकार 2019 के चुनाव में भाजपा को यहां हार का मुंह क्यों देखना पड़ा था? यह टीम बिजनौर, सहारनपुर और नगीना की सीटों पर खास तौर पर मेहनत कर रही है। इसमें से बिजनौर की सीट बसपा के मलूक नागर ने जीती थी, उनके बारे में कहा जा रहा है कि वे अंदरखाने से निरंतर भाजपा के संपर्क में हैं। वहीं भाजपा जयंत चौधरी पर अब भी डोरे डाल रही है, पर जयंत जानते हैं कि ’भगवा पार्टी अपने साथ की छोटी पार्टियों से क्या सुलूक करती है’, लोक जनशक्ति पार्टी से बड़ी मिसाल और क्या दी जा सकती है?