‘आप’ तो ऐसे न थे |
January 18 2015 |
दिल्ली में ज्यों-ज्यों चुनाव की घड़ी करीब आ रही है, ‘आप’ और भाजपा के बीच वोटों का अंतर कम होता जा रहा है। किरण बेदी और शाज़िया इल्मी को भाजपा में लाकर भगवा पार्टी ने ‘आप’ के समक्ष एक महती चुनौती उछाली है, युवा व महिला वोटरों में नए सिरे से पैठ बनाने की कोशिश की है। नहीं तो अगर 2013 के विधानसभा चुनावों की तुलना में ‘आप’ 2014 लोकसभा चुनावों मोदी लहर में भाजपा से बुरी तरह पिछड़ गई थी। खासकर मध्यवर्गीय इलाकों में ‘आप’ का असर तेजी से कम हुआ था। ‘आप’ झुग्गी-झोपड़ी इलाकों के अलावा दलित व मुस्लिम बहुल्य इलाकों में ही अच्छा प्रदर्शन कर पाई थी। मिसाल के तौर पर ‘आप’ के स्टार नेता मनीष सिसौदिया के पटपड़गंज विधानसभा सीट को लें तो सिसौदिया ने 2013 के विधानसभा चुनाव में यहां के 181 पोलिंग बूथ में से 122 पर जीत दर्ज की थी, वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में ‘आप’ की जीत सिर्फ 28 पोलिंग बूथ पर ही सिमट कर रह गई। 2014 के चुनाव में ‘आप’ अपने गढ़ में भी पिछड़ गई, यानी विनोद नगर में 41, मंडावली में 26, मयूर विहार में 22 पोलिंग बूथ पर ही पार्टी बढ़त बना सकी। 13 के चुनाव में लक्ष्मी नगर में ‘आप’ ने कुल 164 पोलिंग बूथ में से 97 पर जीत का परचम लहराया था तो वहीं 14 के चुनाव में ‘आप’ लक्ष्मी नगर में महज 10 पोलिंग बूथ पर ही जीत दर्ज करा पाई। |
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