निशाने पर 18 गवर्नर

June 01 2014


पर कांग्रेसी इस बात को लेकर अभी से हाय-तौबा मचा रहे हैं कि गवर्नर का पद राजनीति से इतर एक संवैधानिक पद है, कांग्रेस के कुछ बड़े नेता संविधान की धारा 156 का हवाला देते हुए कह रहे हैं कि केंद्र की कोई सरकार किसी गवर्नर पर इस्तीफा देने का दवाब नहीं बना सकती। जबकि सच यह है कि जब 2004 में यूपीए-I की सरकार ने केंद्र की वाजपेयी सरकार को बेदखल किया तो सोनिया गांधी के तुरंत प्रभाव से सिक्किम के तत्कालीन गवर्नर केदार नाथ साहनी, जो संघ पृष्ठभूमि के दिल्ली भाजपा के एक प्रमुख नेता रह चुके थे, कैलाश पति मिश्र (बिहार के एक पूर्व भाजपा नेता) को तुरंत प्रभाव से हटा कर उनकी जगह बलराम जाखड़ को भेज दिया गया। संघ से सहानुभूति रखने वाले बिहार के गवर्नर रमा ज्वॉयस को, राजस्थान के गवर्नर मदनलाल खुराना को, यूपी में विष्णुकांत शास्त्री को फौरन हटने पर मजबूर कर दिया गया। उसी प्रकार संघ पृष्ठभूमि वाले भाई परमानंद को भी तुरंत प्रभाव से हरियाणा के गवर्नर पद से हाथ धोना पड़ा। सूत्र बताते हैं कि स्वयं नरेंद्र मोदी कांग्रेस से सहानुभूति रखने वाले 18 राज्यपालों की तुरंत रूखसती के पक्षधर नहीं, पर संघ व पार्टी कैडर का उन पर भारी दवाब है। कम से कम जिन राज्यों में हालिया दिनों में चुनाव होने हैं वहां के गवर्नर बदले जाने की प्रबल संभावना है। पर ऐसे में मैडम शीला दीक्षित का क्या होगा जो महा दो महीने पूर्व ही दिल्ली से अपना बोरिया बिस्तर लेकर केरल के राजभवन में पहुंची हैं। पर लगता है पश्चिम बंगाल के गवर्नर एम.के.नारायणन और महाराष्ट्र के के.शंकर नारायणन की राह सबसे मुश्किल है, मोदी सरकार की पहली गाज इन पर गिर सकती है।

 
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