हारे को हरिनाम

May 07 2012


झारखंड में पार्टी की एका व गठबंधन धर्म की एैसी-तैसी होने के बाद शुक्रवार को संसद परिसर में अडवानी के कमरे में सुषमा, यशवंत, जसवंत और रांची से ताजा-ताजा लौटे अनंत कुमार ने राज्यसभा में हारे पार्टी के उम्मीदवार आहलूवालिया की हार की समीक्षा की। इन नेताओं के तेवर तल्ख थे, अपनी ही पार्टी के चंद सीनियर नेताओं के खिलाफ। वहीं विरोधी खेमा इस बात को प्रचारित करने में जुटा है कि अगर इन्हीं नेताओं ने विवादास्पद एनआरआई बिजनेसमैन अंशुमान मिश्र को मैदान से हटने के लिए मजबूर नहीं किया होता तो यह सीट भाजपा के खाते में होती। माना जा रहा है कि उस वक्त मिश्र ने अपने लिए जरूरी बहुमत का जुगाड़ कर लिया था। अब यह भी साफ हो चुका है कि मिश्र की उद्दात सियासी महत्वाकांक्षाओं को परवान चढ़ाने में न सिर्फ गडकरी बल्कि संघ के प्रमुख नेताओं की एक महती भूमिका रही थी। महेश योगी के स्कूल से निकले और दीपक चोपड़ा के सानिध्य को प्राप्त अंशुमान को राजनैतिक दीक्षा देने वाले उनके असली गुरु अमरीका के डेनबर कॉलरेडो में कानून पढ़ाते हैं, उनका नाम है डा. वेद प्रकाश नंदा। नंदा, अमरीका में हिंदू स्वयंसेवक संघ के प्रमुख भी हैं और संघ में उनकी जड़ें कहीं गहरी हैं, वे राू भैया के समय से संघ से जुड़े हुए हैं, प्रोफेसर नंदा के संघ प्रमुख मोहन भागवत से कहीं गहरे ताल्लुकात हैं। सो, प्रोफेसर नंदा ने अंशुमान के नाम की पैरवी सीधे संघ प्रमुख से की थी, हॉवर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले डा. द्विवेदी की भी चार महीने लंदन, चार महीने अमरीका और चार महीने भारत में रहने वाले अंशुमान से गहरी छनती है, प्रोफेसर द्विवेदी के तार भी कहीं गहरे संघ से जुड़े हुए हैं, माना जाता है कि इन्होंने भी संघ में अंशुमान की जमकर पैरवी की थी। हालिया झारखंड प्रकरण से हार कर भी जीत गए हैं गडकरी।

 
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