मोदी पीएम बनें तो अडवानी को सोनिया की जगह मिलेगी

September 11 2013


नरेंद्र मोदी के खिलाफ विरोध की अलख जगाने वाले अडवानी कैंप को मनाने की मुहिम अब स्वयं संघ ने संभाल ली है। संघ ने अडवानी कैंप के समक्ष एक सुलह का फॉर्मूला रखा है और कहा है कि अगर केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए की सरकार बनती है तो उसमें एल.के.अडवानी को एनडीए का चेयरपर्सन बनाकर ठीक वैसे ही पॉवर दिए जाएंगे जो आज यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी के पास हैं। इसके अलावा एक ओर धुर मोदी विरोधी नेता मुरली मनोहर जोशी से कहा गया है कि पार्टी उन्हें देश का अगला राष्टï्रपति बनवाने की दिशा में पहल करेगी। वहीं नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज के गुस्से पर पानी फेरने के इरादे से संघ ने उन्हें मोदी की कैबिनेट में नंबर दो या स्पीकर बनवाने का आश्वासन दिया है और कहा है कि अगर एक बार केंद्र में भाजपा आती है तो उन्हें गृह या रक्षा जैसे सबसे महत्त्वपूर्ण मंत्रालय सौंपे जा सकते हैं। ं पल-पल सियासी रंग बदल रहे नितिन गडकरी को संघ की ओर से यह आश्वासन मिला है कि अगर 2014 में केंद्र में भाजपानीत गठबंधन की सरकार बनती है तो पार्टी चलाने की कमान एक बार फिर से नितिन गडकरी को सौंपी जा सकती है।
नई दिल्ली के वसंत कुंज स्थित मध्यप्रदेश भवन के मध्यांचल में संघ व भाजपा नेताओं की दो दिवसीय बैठक हुई। बैठक के पहले दिन संघ की ओर से नेतृत्व की कमान भैय्याजी जोशी ने संभाली वहीं दूसरे दिन की बैठक में संघ प्रमुख मोहन भागवत स्वयं उपस्थित थे। इस बैठक में अटल बिहारी वाजपेयी को छोडक़र भाजपा का पूरा पार्लियामेंट्री बोर्ड मौजूद था। बैठक में पार्टी के वयोवृद्ध नेता अडवानी दरअसल इस बात को लेकर चिंतित थे कि अगर एक बार पार्टी की कमान मोदी के हाथों में आ गई तो भाजपा का पूरा स्वरूप मोदीमय हो जाएगा और अन्य नेताओं के लिए पार्टी के इस नए फॉरमेट में कोई जगह नहीं बचेगी। इसलिए अडवानी अपनी ओर से बारंबार यह संदेश देना चाह रहे हैं कि यह उनके अस्तित्व को बचाने की लड़ाई नहीं है अपितु वे भाजपा को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। वहीं कहीं अडवानी की एक मुख्य चिंता मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर भी है, अडवानी कैंप का दावा है कि वहां कम से कम 30-40 सीटें ऐसी हैं, जिस पर मुस्लिम मतदाता एक हद तक निर्णायक है या वह इन सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों के पक्ष में वोट करता है अथवा तटस्थ रहता है। लेकिन अगर एक बार मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले पीएम उम्मीदवारी को लेकर मोदी के नाम का एलान हो जाता है तो शिवराज सिंह चौहान को मुस्लिमों की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है और भाजपा की विधानसभा चुनाव में 30 सीटें कम हो सकती हैं। सो, अडवानी कैंप ने संघ पर यह दबाव बनाने की कोशिश की है कि मोदी के नाम का एलान पांच राज्यों के हालिया विधानसभा चुनावों के बाद हो, पर संघ ने साफ कर दिया है कि नरेंद्र मोदी को लेकर संघ का मंतव्य बेहद साफ है और उसका स्पष्टï तौर पर मानना है कि नरेंद्र मोदी को सामने रख कर चुनाव में जाने पर भाजपा को इसके अप्रत्याशित परिणाम मिल सकते हैं और भाजपा अपने दम पर 2014 के लोकसभा चुनाव में 272 के बहुमत का जादुई आंकड़ा छू सकती है। सो, संघ ने एक तरह से इस दो दिवसीय बैठक में साफ कर दिया है कि मोदी की पीएम उम्मीदवारी का एलान पार्टी की 13 सितंबर को आहूत होने वाली संसदीय बोर्ड की बैठक में हो सकता है। संघ ने भाजपा नेताओं से यह भी साफ कर दिया है कि चूंकि 19 सिंतबर से पितृपक्ष यानी श्राद्ध शुरू हो रहा है सो मोदी के नाम का एलान किसी भी तरह से 19 सितंबर से पहले होना चाहिए। लेकिन इस मामले में सबसे बड़ा पेंच यह है कि अभी तक औपचारिक रूप से यही तय नहीं हो पाया है कि पार्टी संसदीय बोर्ड की 13 सितंबर को ही बैठक होगी। संसदीय बोर्ड की बैठक की तारीख को लेकर पार्टी में अब तक सस्पेंस बरकरार है। पर संघ ने अपनी ओर से प्रयास जारी रखा हुआ है। इसी क्रम में बुधवार 10 सितंबर को पार्टी के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी मोहन भागवत के एक खास मैसेज के साथ अडवानी से मिले और उनके साथ कोई सवा घंटे का वक्त गुजारा। समझा जाता है कि गडकरी ने अडवानी को इस बात के लिए राजी करने के प्रयास किए कि भाजपा में अडवानी की प्रासंगिकता और भूमिका बनी रह सकती है बशत्र्ते वे संघ के तयशुदा फॉर्मूले के मुताबिक काम करें। अन्यथा नरेंद्र मोदी को लेकर संघ एकतरफा फैसला लेने को मजबूर हो सकता है। सवाल यही अहम है कि क्या अडवानी एनडीए की सोनिया गांधी बनने को तैयार हैं? पर मौजूदा सियासी हालात में जब हर तरफ यानी पार्टी, संघ और इसके अनुषांगिक संगठनों में मोदी के पक्ष में तेज बयार बह रही हो तो अडवानी के पास इस प्रस्ताव को मानने के सिवाय चारा भी क्या बचता है?

 
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