दर्द-ए-अडवानी

November 21 2009


अडवानी व्यथित हैं, कुपित हैं संघ के रवैये पर। अडवानी का दर्द उनके शब्दों से साफ झलकता है कि ‘अगर मैं 83 साल का हो गया हूं तो इसमें मेरा क्या कसूर? मोरारजी भाई भी जब 82 के हो गए थे तब भी उन्हें कहां किसी ने हटने को कहा था?’ पर संघ का अपना तर्क है, संघ का कहना है कि उसने 44 साल की उम्र में अडवानी को बागडोर सौंप दी थी, और काएदे से अडवानी को 15 वर्ष पहले ही आने वाली पीढ़ी के लिए नेतृत्व छोड़ देना चाहिए था और स्वयं ‘मेंटर’ की नई भूमिका में अवतरित हो जाना चाहिए था। पर अडवानी इस मामले में अव्वल दर्जे के हठधर्मी हैं उनका कहना साफ है कि ‘अगर पद नहीं तो फिर पॉवर भी नहीं।’ पहले संघ अडवानी के लिए पार्टी में एक नई ‘पोस्ट’ बनवाने को राजी था, पर अडवानी की हठधर्मिता ने संघ को बेचैन कर दिया है और बदली भंगिमाओं के साथ संघ तो अब बस यही गुहार लगा रहा है कि ‘अडवानी जी दिसंबर तक तो आपको जाना ही होगा।’ और अडवानी हैं कि वे रिटायर होने को कतई तैयार नहीं दिखते।

 
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