आतंक का बस एक रंग |
February 26 2013 |
हैदराबाद धमाकों से जहां कांग्रेसनीत यूपीए सरकार के इरादों की चिंदियां उड़ीं, बड़बोले गृहमंत्री के बड़े बोल से राष्ट्र के ाख्म हरे हुए, बेगुनाहों के खून ने मानो चीख-चीख कर बस यही कहा-‘शिंदे साहब, आतंक का कोई रंग नहीं होता, न भगवा, न हरा और आतंक का प्रयोजन भी सिर्फ एक ही होता है-दहशत।’ सो, काबिल गृहमंत्री के कुशल दिशा-निर्देशों में काम कर रही खुफिया एजेंसियों की नारें तब कहां थीं जब हैदराबाद ब्लास्ट के चार दिन पहले ही घटनास्थल को मॉनिटर करने वाले सीसीटीवी कैमरों के तार काट डाले गए और सरकार को आतंकियों के इरादों की भनक भी नहीं मिली। मतलब इंडियन मुजाहिद्दीन काम पर था और हमारी एजेंसियां सो रही थीं। एक फकत यह जानने कि कोशिश भी नहीं हुई कि आखिर इन क्लाो सर्किट कैमरों के तार किस मकसद से काट दिए गए हैं। सब जानते हैं कि आइएम द्वारा प्रयुक्त बम में अमोनियम नाइट्रेट और टाइमर का इस्तेमाल होता है, ये आतंकी संगठन शाम के 6-7 बजे के बीच ही घटना को अंजाम देता है। और यह संगठन उन्हीं शहरों में ऐसी कायराना वारदातों को अंजाम देता है जिसकी रेकी पहले से की गई होती है यानी वैसे शहरों के रिपीट होने की ज्यादा संभावनाएं होती हैं जहां ये आतंकी संगठन पहले विस्फोट कर चुका है। ऐसे में यहां यह सवाल उठना निहायत लाािमी है कि हमारी खुफिया एजेंसियों ने ऐसी धमकियों या सूचनाओं को किंचित गंभीरता से क्यों नहीं लिया? चार दिन पहले ही सीसीटीवी कैमरों की तार कट जाती है और हमारी सुरक्षा एजेंसियों को इसकी भनक नहीं मिलतीहै, इससे साफ है कि इन सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को मॉनिटर करने वाला कोई नहीं था। जाहिर है जब हमारी सुरक्षा पर किसी की निगरानी नहीं, तो हम आम अवाम की जान तो ऊपरवाले के ही भरोसे है। |
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