अडवानी की अनसुनी |
October 20 2009 |
जाने क्या बात हुई कि अब अडवानी की उनकी पार्टी भाजपा में ही कोई सुनता नहीं, महाराष्ट्र चुनाव की पूर्व संध्या तक अडवानी की बस यही इच्छा रही कि चाहे जैसे भी हो उध्दव ठाकरे और राज ठाकरे में दोस्ती हो जाए, इसके लिए अडवानी ने अपनी ओर से एक फार्मूला भी सुझाया कि उध्दव ठाकरे भाजपा-शिवसेना गठबंधन के मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट हों और राज ठाकरे को शिवसेना संगठन की तमाम जिम्मेदारी सौंप दी जाए ताकि वे अपनी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का विलय शिवसेना में करने को राजी हो जाएं। अडवानी ने तो एक कदम आगे बढक़र यह भी पेशकश कर दी थी कि वे इसके लिए बाल ठाकरे से भी बात करने को तैयार हैं। पर अडवानी के इस प्रस्ताव पर न तो राज और न ही उध्दव ने कोई कान धरा। पिछले दिनों भाजपा की संसदीय दल की बैठक में अडवानी ने एक बिन मांगी सलाह दे डाली कि वसुंधरा को अभी बने रहने दिया जाए, पर राजनाथ समेत पार्टी के अन्य सीनियर नेताओं ने अडवानी की इस सलाह को कतई भी तवज्जो नहीं दी। क्या नक्करखाने में तूती की आवाज हो गए हैं अडवानी? |
Feedback |