हरियाणा की करनाल सीट से प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भाजपा की ओर से चुनावी मैदान में हैं जहां उन्हें कांग्रेस के युवा उम्मीदवार दिव्यांशु बुद्धिराजा से कड़ी टक्कर मिल रही है। अपने चुनाव प्रचार के सिलसिले में खट्टर जब पानीपत पहुंचे तो वहां उनका भव्य स्वागत हुआ। इसी बीच संघ और भाजपा का एक पुराना कार्यकर्ता उनके पास आया और उनसे कहा कि ’प्रदेश में बहुत गंदी राजनीति चल रही है। मैं स्वयं एक ब्राह्मण हूं, सो मुझे इस बात की काफी व्यथा है कि रमेश कौशिक जी का टिकट काट दिया गया है जो ब्राह्मणों के एक बड़े नेता हैं। उनकी सीडी आपके मुख्यमंत्री रहते ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गई या कर दी गई। आपने वास्तव में राजनीति का स्तर काफी गिरा दिया है।’ इस पर हाजिर जवाब खट्टर ने कहा-’जनाब, मैंने राजनीति का स्तर उठाने का काम किया है, क्योंकि मेरे संज्ञान में ऐसी 8-9 सीडी आई थीं पर चली सिर्फ एक। तो मैंने तो राजनीति का स्तर गिरने से बचा लिया और हरियाणा का नाम भी बचा कर रखा।’
जब वाराणसी लोकसभा सीट पर पीएम मोदी अपना नामांकन दाखिल करने पहुंचे तो भाजपा शीर्ष ने वहां तीन ऐसे नेताओं को तलब किया जो खुद भी लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे। इनमें शामिल थे केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, जो झारखंड के खूंटी से चुनाव लड़ रहे थे, केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान जो मुज्जफरनगर से चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे थे और तीसरे थे सुमेधानंद सरस्वती जो राजस्थान के सीकर से कमजोर चुनावी पिच पर डटे थे। इन तीनों नेताओं को वाराणसी लोकसभा सीट पर अलग-अलग क्षेत्र में चुनाव प्रचार की कमान सौंपी गई है। इस पर वहां एक सीनियर भाजपा कार्यकर्ता ने एक बड़े भाजपा नेता से कहा कि ’कितने निष्ठावान हैं ये लोग जो अपनी-अपनी सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद वाराणसी में पार्टी को इतना वक्त दे रहे हैं।’ इस पर उन बड़े नेताजी ने चुटकी लेते हंसे और कहा-’हमारे जमीनी सर्वेक्षणों के नतीजों में ये तीनों ही पिछड़ रहे हैं सो, इतना वक्त देना आप उनकी मजबूरी भी मान सकते हैं।’
Comments Off on तीन नेता और वाराणसी में फैला रायता
बिहार के विधानसभा चुनाव 2025 में होने वाले हैं पर इसके लिए बिसात बिछनी अभी से शुरू हो गई है। कभी नीतीश से छत्तीस का आंकड़ा रखने वाले चिराग पासवान अब उनसे दूरियां कम करने के प्रयासों में जुटे हैं। चिराग के चुनाव प्रचार में मोदी आए तो उन्होंने उन्हें बिहार का भावी मुख्यमंत्री बनने का आश्वासन दे दिया। सूत्रों की मानें तो बिहार के मुख्यमंत्री के लिए मोदी की अपनी पहली और निजी पसंद चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर हैं जो इन दिनों मीडिया में घूम-घूम कर मोदी के पक्ष में अलख जगा रहे हैं। वहीं पलटू राम यानी नीतीश कुमार को लेकर भाजपा शीर्ष का संशय फिर से गहराने लगा है कि चुनाव के बाद पाला बदल कर वे विरोधी खेमे से हाथ मिला सकते हैं।
अभी जुम्मा-जुम्मा भाजपाई हुए नवीन जिंदल को अपने रंग बदलने की कीमत चुकानी पड़ रही है। वे हरियाणा के कुरूक्षेत्र लोकसभा सीट से भाजपा के अधिकृत उम्मीदवार हैं। जिंदल पिछले दिनों अपने चुनाव प्रचार के सिलसिले में स्कूली शिक्षकों के साथ एक मीटिंग के लिए गए जिन्हें एक संघ पोषित स्कूल के परिसर में एकत्रित किया गया था। सूत्र बताते हैं कि जिंदल ने वहां उपस्थित सभी शिक्षकों से एकजुट होकर उनके लिए काम करने की अपील की। पर वहां मौजूद एक शिक्षक जो कि काफी मुखर थे, उन्होंने नवीन जिंदल से एक सीधा सवाल पूछ लिया कि ’पिछले चुनावों में मोदी अपने भाषणों में आपको ‘कोयला चोर’ बुलाते थे, अब चूंकि आप भाजपा में आ गए हैं तो क्या आपने अपने आपको ‘कोयला चोर’ मान लिया है?’ पर इस तल्ख सवाल पर जिंदल ने अपना आपा नहीं खोया। उन्होंने बेहद संजीदगी से सवाल पूछने वाले उस अध्यापक से कहा-’क्या आप जानते हैं कि पिछले दस सालों से हम पर क्या गुजरी है?’ (सनद रहे कि नवीन जिंदल पर कोयला ब्लाक आबंटन से जुड़े मामलों समेत कई अन्य मामले लंबित हैं जिनमें से 3 मामले सीबीआई के पास हैं और 3 अन्य ’पीएमएलए’ के तहत ईडी के सुपुर्द हैं।) नवीन ने उस शिक्षक से आगे कहा कि ’पिछली बार जब 2019 में वे चुनाव लड़ना चाहते थे तो उन्हें चेतावनी मिली थी कि चुनाव लड़ोगे तो अंदर कर दिए जाओगे। इस बार उन्हें चुनाव लड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी तो उन्हें चेतावनी मिल गई कि चुनाव नहीं लड़ोगे तो अंदर डाल दिए जाओगे।’ अध्यापक समझ गए कि मजबूर ये हालात इधर भी हैं और उधर भी।
यह बात तब कि जब देश में चुनाव का पांचवां चरण चल रहा था तो भाजपा के संगठन महासचिव बीएल संतोष को एक नायाब आइडिया आया, उन्होंने आनन-फानन में उन भाजपा नेताओं की एक सूची तैयार की जो अलग-अलग कारणों से पार्टी से नाराज़ चल रहे हैं और जिन्होंने चुनाव प्रचार से अपनी दूरियां बना रखी हैं। संतोष ने ऐसे 32 नामों की शिनाख्त की जिनमें से ज्यादातर पार्टी नेताओं के टिकट कट गए थे या जिन्हें पार्टी ने खुद ही दरकिनार कर दिया था। इन असंतुष्ट नेताओं की लिस्ट में जयंत सिन्हा, वरूण गांधी, पूनम महाजन, प्रवेश वर्मा, रमेश विधुड़ी जैसों के नाम शामिल थे। बेहद असंतोष के मारे संतोष जी ने यह चिट्ठियां ड्राफ्ट कर उन्हें दस्तखत के लिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के पास भेज दीं। जेपी नड्डा को जैसे ही चिट्ठियों के मजमून का पता चला उनके तोते उड़ गए और उन्होंने ना सिर्फ इन चिट्ठियों को साइन करने से मना कर दिया, बल्कि उसी वक्त अमित शाह को फोन कर उन्हें सारी वस्तुस्थिति से अवगत भी करा दिया। मामला और माहौल बिगड़ने की आशंका भांप शाह ने फौरन संतोष को तलब कर उन्हें चेतावनी देने वाले लहज़े में कहा-’आपकी जिम्मेदारी संगठन चलाने की है, पार्टी को एकजुट रखने की है, आप इसमें पलीता क्यों लगाना चाहते हैं? आप कर्नाटक भी नहीं संभाल पाए और अब चिट्ठियां भेज एक नया बखेड़ा खड़ा करना चाहते हैं? आपको मालूम है आप जिन लोगों को चिट्ठियां भेजना चाहते हैं जब वे इनका जवाब देंगे तब वे मीडिया की सुर्खियां बन जाएंगे।’ पर कहते हैं बीएल संतोष नहीं माने और उन्होंने एक ’टेस्ट केस स्निेरियो’ के आधार पर झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष के दस्तखत से एक चिट्ठी जयंत सिन्हा को भिजवा दी। इसके अलावा उन्होंने दिल्ली भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष को प्रवेश वर्मा और रमेश विधुड़ी को भी ऐसे ही चिट्ठी जारी करने को कहा पर दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष ने संतोष के आदेश को शिरोधार्य करने की बजाए इस पूरे मामले से नड्डा को अवगत करा दिया। सूत्रों की मानें तो इस पर तमतमाए नड्डा ने बीएल संतोष को फोन करके कहा-’आपको हमने मना किया था, पर आप माने नहीं। अब हम चुनाव देखें या अपनों से ही झगड़े में उलझें।’ कहते हैं संतोष का असंतोष अब अब भी बरकरार है।
Comments Off on बीएल की चिट्ठी पर भगवा शीर्ष का असंतोष
सियासत के विहंगम आकाश में उड़ते परिंदों के पर गिनने में सिद्दहस्त भाजपा शीर्ष ने महाराष्ट्र में अपनी हारी बाजी को जीतने का नया प्लॉन बनाया है। देश के शीर्षस्थ उद्योगपति घराना और ठाकरे परिवार की दोस्ती कोई छुपी बात नहीं है। सो, पिछले सप्ताह जब मुंबई के इस शीर्षस्थ उद्योगपति ने उद्धव ठाकरे को सपरिवार अपने घर भोजन पर आमंत्रित किया तो मेन्यू का आकार-प्रकार खासा सियासी चाशनी में डूबा हुआ था। इस उद्योगपति ने उद्धव से खास तौर पर कहा कि ’वे आदित्य को जरूर साथ लेकर आएं।’ ठाकरे परिवार जब अपने मेजबान के घर पहुंचा तो बातों की शुरूआत ही देश की राजनीति पर केंद्रित रही। इन थैलीशाह ने उद्धव को समझाते हुए कहा कि ’जब हवा का रूख एकतरफा हो तो उसके खिलाफ जाने में कोई समझदारी नहीं है।’ सूत्र बताते हैं कि इस पर उद्धव ने कहा कि ’जरा खुल कर अपनी बात रखिए।’ तब उस उद्योगपति महोदय ने कहा कि ’हमारी दिल्ली में अक्सर बातें हो जाती हैं और भाजपा शीर्ष आपको लेकर काफी फिक्रमंद है।’ उनका कहना है ’उद्धव हमारे पुराने साथी हैं, जरा सी कहासुनी क्या हो गई, रिश्तों में खटास आ गई। हम अब उसे ठीक करना चाहते हैं, क्योंकि यह हमारा परिवार है।’ भाजपा शीर्ष ने कथित तौर पर यह भी आश्वासन दिया है कि ’इस बार चुनावी नतीजे चाहे जो भी रहें, भाजपा आदित्य ठाकरे को महाराष्ट्र का नया सीएम बनाने को तैयार है। रही बात देवेंद्र फड़णवीस की तो उन्हें केंद्र में लाकर महाराष्ट्र की राजनीति से अलग कर दिया जाएगा।’ इन्हीं उद्योगपति के मार्फत से उद्धव को यह भी आश्वासन मिला है कि ’उनके साथ जो हुआ वह ठीक नहीं हुआ, उनकी पुरानी पार्टी उन्हें लौटा दी जाएगी।’ यह सारी बातें सुनने के बाद उद्धव ने दो टूक कहा-’यह तो बेहद षुभ संकेत है पर मैं अब जीवन में कभी भाजपा के साथ नहीं जाऊंगा। रही बात पार्टी की, तो हमारे कार्यकर्ता आज भी हमारे साथ है और हमें उन पुराने नेताओं की कोई जरूरत नहीं जो मुश्किल वक्त में हमारा साथ छोड़ कर चले गए थे।’ उद्धव के साफ संदेश के बाद भगवा ‘कमल ताल’ में फिलहाल लगाम सी लग गई है।
पिछले काफी समय से सोशल मीडिया में ये खबरें तांक-झांक कर रही थीं कि भाजपा और संघ के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा। इस खटपट को मानो तब एक वैधता मिल गई जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में बेहद साफगोई से कह दिया कि ’अब हमें पहले की तरह आरएसएस की जरूरत नहीं है, क्योंकि आज भाजपा और उसका संगठन स्वयं में सक्षम है। यही वजह है कि पार्टी आज अपने आपको चला रही है।’ तब इस बात की पड़ताल शुरू हो गई कि आखिर संघ और भाजपा में खटपट की असली वजह क्या है? सूत्रों की मानें तो मोदी और संघ नेतृत्व में आर्थिक नीतियों को लेकर कुछ मतभेद हैं। शायद यही वजह रही कि विदर्भ में अपने चुनाव प्रचार के दौरान मोदी नागपुर संघ मुख्यालय गए। एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि संघ अतिशय व्यक्तिवाद को नापसंद करता है और 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी की ऐतिहासिक जीत के दो महीने बाद ही संघ प्रमुख भागवत ने कह दिया था कि ’भाजपा को जीत किसी एक व्यक्ति की वजह से नहीं मिली है।’ एक और तर्क यह भी दिया जा रहा है कि संघ चाहता था कि राम मंदिर बनवाने के लिए संसद से कानून पारित हो पर मोदी ने साफ कर दिया था कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही मान्य होगा। अब नड्डा के ताज़ा बयानों ने संघ और भाजपा के इस असहज रिश्ते को सार्वजनिक करने का काम किया है।
नेशनल कांफ्रेंस के एक प्रमुख नेता उमर अब्दुल्ला इस दफे इंडिया गठबंधन की ओर से कश्मीर के बारामूला से लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं पर फिलवक्त उमर अपनी सीट पर चहुंओर से घिर गए लगते हैं। उमर के पिता फारूख अब्दुल्ला श्रीनगर से सांसद हैं, यह सीट नेशनल कांफ्रेंस की परंपरागत सीट में शुमार होती है। अपनी उम्र और स्वास्थ्यगत कारणों का हवाला देते हुए फारूख ने इस दफे श्रीनगर से चुनाव लड़ने से मना कर दिया है पर उमर को बारामूला की सीट ज्यादा सेफ दिखी जहां उनका मुकाबला पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद लोन से है। ये भी कयास लग रहे हैं कि सज्जाद लोन को अंदरखाने से भाजपा का सहयोग प्राप्त है। लेकिन बारामूला के चुनाव को इस बार दिलचस्प बना दिया है तिहाड़ जेल में बंद शेख अब्दुल रशीद उर्फ इंजीनियर रशीद ने। रशीद 2 बार के विधायक हैं और ’टेरर फंडिंग’ के मामले में जेल में बंद हैं। रशीद बारामूला से आवामी इंतेहा पार्टी यानी ‘एआईपी’ के सहयोग से निर्दलीय मैदान में उतर गए हैं। उनके चुनाव प्रचार की कमान उनके 23 वर्षीय पुत्र अबरार रशीद ने संभाल रखी है। अबरार के रोड शो और रैलियों में युवाओं की जबर्दस्त भीड़ उमड़ रही है। कहना न होगा कि इंजीनियर रशीद ने बारामूला का चुनावी मुकाबला त्रिकोणिय बना दिया है यहीं चिंता उमर अब्दुल्ला को खाई जा रही है।
अमेठी और रायबरेली में इस दफे कांग्रेस के हौंसले बम-बम हैं। रायबरेली से स्वयं राहुल गांधी मैदान में हैं, वहीं अमेठी से गांधी परिवार ने अपने खास वफादार किषोरी लाल शर्मा को चुनावी मैदान में उतारा है। रायबरेली में सोनिया गांधी भी अभी ताजा-ताजा भावुक अपील कर आई हैं। सो, कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का दावा है कि राहुल गांधी यहां से बड़े मार्जिन से जीत रहे हैं। वहीं अमेठी में भी किशोरी लाल शर्मा ने भाजपा की प्रमुख नेत्री स्मृति ईरानी की नींद उड़ा दी है। यहां कांग्रेस के इतने आत्मविश्वास का कारण यह भी है कि अमेठी में 3 लाख मुस्लिम और डेढ़ लाख यादव वोटर हैं। वहीं गांधी परिवार से सहानुभूति रखने वाले वोटरों की भी एक बड़ी तादाद है। सो, अमेठी को इतने हल्के में लेने वाली भाजपा और संघ ने यहां अब अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
Comments Off on अमेठी और रायबरेली में इस दफे कांग्रेस
हरियाणा के नव नवेले मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के लिए राज्य के निर्दलीय विधायकों को सहेज कर रखना किंचित मुश्किल हो रहा है। इससे पहले भी 3 निर्दलीय विधायकों ने भाजपा सरकार से अपने हाथ वापिस खींच लिए थे। सूत्र बताते हैं कि इन तीनों निर्दलीय विधायकों की कुछ अपनी निजी डिमांड थीं जिसकी पूर्ति वे मुख्यमंत्री से एक सप्ताह के अंदर चाहते थे। इस बाबत वे मुख्यमंत्री से जाकर मिले भी और उनके समक्ष अपनी बात भी रखी। पर कहते हैं सैनी ने उनकी मांगों को सुनने के बाद कहा कि ’इस बारे में निर्णय मैं अकेले नहीं ले पाऊंगा मुझे दिल्ली भी बात करनी होगी।’ खैर, निर्दलीय विधायकों ने उन्हें अपनी समस्याओं के समाधान के लिए एक सप्ताह का वक्त मुकर्रर कर दिया। इधर दिल्ली में शीर्ष नेतृत्व से बात करने के लिए सैनी ने जब-जब फोन लगाया उन्हें एक ही रटा-रटाया जवाब मिला कि ’सब चुनाव में व्यस्त हैं इस वक्त हम आपकी बात नहीं करवा पाएंगे।’ जब एक सप्ताह बाद तीनों निर्दलीय विधायक मुख्यमंत्री से मिलने आए और उन्हें अपनी डिमांड याद दिलवाई तो सैनी ने उनसे कुछ और दिनों की मोहलत मांगी पर ये तीनों ही विधायक यह कहते हुए मुख्यमंत्री के साथ अपनी मीटिंग से उठ गए कि ’भाजपा में निर्णय लेने की प्रक्रिया का पूरी तरह केंद्रीकरण हो गया है हमें कोई और ही रास्ता तलाशना होगा।’