’चलो उतारते हैं हम दोनों एक दूसरे के चेहरों से मुखौटे मेरा आइना भी भूल गया है कि मैं अब दिखता कैसा हूं’ सियासत में कुछ भी स्थायी नहीं है, चुनांचे जातीय जनगणना पर विपक्षी दलों के समवेत स्वरों को हमेशा झुठलाने वाली भाजपा ने अब रणनीति बदलने का फैसला किया है। कांग्रेस ने लगातार ओबीसी हक और जातीय जनगणना की मांग को तूल दिया है, खासकर राहुल गांधी ने इसके सिरों को जोड़ कर 2024 चुनाव के लिए रोड मैप भी तैयार कर लिया है। सो, राहुल के इस ब्रह्मास्त्र को फुस्स करने के लिए मोदी संसद के शीतकालीन सत्र में जातीय जनगणना कराने के लिए राजी हो सकते हैं और सबसे अहम तो यह कि इसकी रिपोर्ट भी महज़ तीन महीने में यानी फरवरी तक आ सकती है। पर चतुर सुजान मोदी की योजना इसमें एक पेंच फंसाने की है यानी जातीय जनगणना में उप जातियों की जनगणना भी शामिल की जा सकती है। भाजपा का अपना अनुमान है कि ’मुख्य जातियों में डिवीजन का फायदा उसे 24 के चुनावों में मिल सकता है।’ मिसाल के तौर पर भाजपा ने बिहार में यादव वोटों के बोलबाले को मद्देनज़र रखते अपनी ओर से नंद किशोर यादव, राम कृपाल यादव, नित्यानंद राय सरीखे कई यादव नेताओं को हमेशा तरजीह दी, पर बिहार के यादवों ने अपना नेता लालू यादव और उनके परिवार को ही माना। मिसाल के तौर पर भाजपा चाहती है कि ’बिहार-यूपी जैसे राज्यों में यादव की उप जातियों को भी चिन्हित कर सामने लाया जाए, जिससे यादव वोट बैंक में दरार पड़ सके।’