ओवैसी की मैच फिक्सिंग

April 07 2024


सियासत में रंगे सियारों की भी कोई कमी नहीं। कुछ दूर से पहचान भी लिए जाते हैं पर उनकी सियासी महत्ता इससे कम नहीं हो जाती। असद्द्दीन ओवैसी की ’एआईएमआईएम’ पार्टी को भले ही भाजपा की ’बी टीम’ कह लें पर यह खेल बिगाड़ने का माद्दा तो रखती ही है। ओवैसी ने ’अपना दल कमेरावादी’ की पल्लवी पटेल के साथ मिल कर यूपी में तीसरे मोर्चे का गठन किया है, जिसे वो ’पीडीएम’ का नाम दे रहे हैं। ’पीडीएम’ यानी पिछड़ा, दलित और मुसलमान। जबकि सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने इससे कहीं पहले ’पीडीए’ का नारा बुलंद कर दिया था ’पीडीए’ यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक। इस पर ओवैसी ने चुटकी लेते हुए कहा था ’क्या पता ये अल्पसंख्यक न होकर अगड़ा हो, सो हमने सीधे इसे मुसलमान से जोड़ दिया है।’ ओवैसी ’मैच फिक्सिंग’ का गेम खेलने यूपी में पहली बार 2017 विधानसभा चुनाव में आए, जब उन्होंने अपने 38 उम्मीदवार मैदान में उतारे। इत्तफाक देखिए इनमें से 37 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई पर फिर भी ओवैसी मुसलमानों के 2 लाख वोट सपा के खाते से काटने में कामयाब रहे। इसके बाद आया 2022 का विधानसभा चुनाव जिसमें ओवैसी ने 95 उम्मीदवार मैदान में उतारे जिनमें से 49 की जमानत जब्त हो गई और वे वोट ले आए 4 लाख और सपा के कई उम्मीदवार बेहद मामूली अंतर से चुनाव हार गए। यूपी में तकरीबन 19 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं और यहां की 80 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें वैसी हैं जहां 20 से 30 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। वहीं रामपुर, संभल जैसी लोकसभा सीटों पर तो 49 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। चूंकि ओवैसी को मुस्लिम वोट काट कर अपरोक्ष तौर पर भाजपा को ही फायदा पहुंचाना है सो उन्होंने यूपी में पहले चरण की 8 सीटें छोड़ दी है और अब वे संभल, मुरादाबाद, आज़मगढ़, बहराइच, फिरोजाबाद, बलरामपुर, कुशी नगर जैसी सीटों पर अपने मुस्लिम उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रहे हैं इससे ‘इंडिया गठबंधन’ के समक्ष एक महती चुनौती पेश हो रही है। सनद रहे कि इस बार सपा ने यूपी में अपने 46 घोषित उम्मीदवारों में से मात्र 3 मुस्लिम प्रत्याशियों को ही मैदान में उतारा है। सो, ओवैसी सीधे अखिलेश से पूछ रहे हैं कि ’क्या सपा ने मुसलमानों को केवल दरी बिछाने के लिए ही पार्टी में रखा है।’ 

 
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