ईरान से क्यों परेशां है हिन्दुस्तान

April 07 2024


इसी 15 जनवरी को भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर अपनी दो दिवसीय ईरान यात्रा पर तेहरान पहुंचे थे, जहां उनकी मुलाकात ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी और वहां के विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहयान से हुई। बातचीत का मसला चाबहार पोर्ट पर ही केंद्रित था जिसे भारत को नया रूप रंग देना था। ईरान के राष्ट्रपति इस प्रोजेक्ट में हो रही देरी से नाखुश बताए जाते हैं, उन्होंने दो टूक लहजे में जयशंकर से पूछा कि ’आप इस प्रोजेक्ट की डेडलाइन बताइए?’ सनद रहे कि ईरान के तटीय शहर चाबहार के विकास के लिए भारत व ईरान के बीच आज से दो दशक पहले 2003 में सहमति बनी थी, 2016 में इस समझौते को मंजूरी मिली थी। यह बंदरगाह अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए इंटरनेशनल नार्थ-साउथ कोरिडोर के तौर पर काफी अहम है। पर इस बार भारत में आयोजित हुए जी-20 सम्मेलन में नए ट्रेड रूट बनाने पर सहमति बनी है जिससे भारत के लिए चाबहार आईएनएसटीसी और आईएमईसी में निवेश करना उतना आसान नहीं रह जाएगा। इससे पूर्व कुछ ऐसा ही श्रीलंका के हब्बन टोटा बंदरगाह को लेकर भी हुआ था, पहले भारत को ही इस पोर्ट को विकसित करना था, उस वक्त महिंद्रा राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति थे और उनके भाई वहां के विदेश मंत्री। तब ये दोनों भाई एक चीनी डेलीगेट्स के संपर्क में आए और चीन ने हब्बनटोटा में दिलचस्पी दिखाई और भारत के हाथ से यह प्रोजेक्ट चला गया था जो पोर्ट रणनैतिक रूप से हमारे देश के लिए बेहद महत्वपूर्ण था, क्या अब चाबहार भी उसी रास्ते चल निकला है? क्या इस प्रोजेक्ट पर भी चीन की नज़र है?

 
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