’तेरी तिश्नगी है जो भटकाती है मुझे इस कदर
चलता हूं गर्म रेत पर, आंखों में समंदर भर कर’
भारतीय राजनीति के कई गुजरे दशक इस बात की चुगली खाते हैं कि कैसे गांधी परिवार और कांग्रेस एक-दूसरे के पूरक साबित हुए हैं, और जब-जब कांग्रेस के अंदर से गांधी परिवार की बादशाहत को चुनौती मिली है, शह-मात की बिसात पर अपने राजा-रानी को बचाने के लिए मामूली प्यादों ने भी क्या स्वांग भरा है। जाने दीजिए गांधी परिवार को लेकर प्रशांत किशोर पांडेय के उलाहनों को, पिछले दिनों हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी की उस अहम मीटिंग की बात करते हैं। इस मीटिंग से पहले राहुल गांधी अपनी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता जो जम्मू-कश्मीर से ताल्लुक रखते हैं, तारिक हामिद कर्रा से आंधे घंटे की अहम मुलाकात करते हैं। फिर दोनों नेता कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में शामिल होने के लिए प्रस्थान कर जाते हैं। इस अहम बैठक में जैसे ही कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्षा सोनिया गांधी का जोशीला उद्बोधन खत्म होता है, बिना किसी औपचारिक भूमिका के कर्रा अचानक से उठ खड़े होते हैं और जोर से बोलना शुरू कर देते हैं-’हम लोगों के लिए गांधी परिवार ही कांग्रेस है और कांग्रेस ही गांधी परिवार है और जो भी लोग यहां मौजूद हैं और वे राहुल गांधी को अपना नेता मानते हैं तो वे सभी अपने हाथ खड़े करें।’ बैठक में एकबारगी असमंजस का आलम पसर गया, फिर एक-एक करके हाथ ऊपर उठने लगे, मीटिंग में उपस्थित गुलाब नबी आजाद को भी अपने हाथ उठाने पड़े। अंबिका सोनी और मुकुल वासनिक थे जो इन्होंने समर्थन का यह स्वांग नहीं भरा। इसके बाद कर्रा ने जोश में भर कर हुंकार भरी-’जो गद्दार हैं उन्हें पार्टी से निकाला जाए।’ बैठक खत्म हुई तो भक्त के प्रताप से गद्गद् राहुल गांधी कर्रा को बाहर दरवाजे तक छोड़ने आए। इन्हीं वाचाल भंमिगाओं से ही तो मिल कर बनता है आज की राजनीति का असली चरित्र।