अब भी क्यों नहीं मान रहे किसान

November 28 2021


’यह बची खुची रोशनी भी क्या घर लेकर जाएंगे
बिखरा कर राहों में कल फिर चल कर आएंगे’

उन्हें उस हर रोशनी का हुनर मालूम है जो निराश मन को रौशन करता है, पर किसानों के मन के मर्म को, दर्द को भांपने में उनसे देर हो गई, कुछ गलत फीडबैक की वजह से और कुछ पूर्वाग्रही हठधर्मिता की वजह से। सूत्र बताते हैं कि शुक्रवार को राष्ट्र के नाम संदेश की इबारत तो महीने पूर्व लिखी जा चुकी थी जब कैप्टन अमरिंदर सिंह पीएम और अमित शाह से मिलने आए थे। कैप्टन का पीएम व शाह से बस यही आग्रह था कि ’तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करना बेहद जरूरी है तभी वे देदीप्यमान भगवा आस्थाओं का आसरा लेकर पंजाब के मतदाताओं के बीच जा सकते हैं,’ इस बात का इसी कॉलम में सबसे पहले जिक्र हुआ था कि इस घोषणा के बाद कैप्टन खुल कर भाजपा की ओर से खेलने लगेंगे। ऐसा ही हुआ, पर पीएम की घोषणा के बाद भी किसान अभी माने नहीं हैं, उन्हें इन कानूनों के संसद में निरस्त होने का इंतजार है, वहीं वे एमएसपी पर वैधानिक गारंटी की अपनी पुरानी मांग पर अब भी अड़े हैं। पर पीएम की बात पर इतना अविश्वास ठीक नहीं, यह देश के उच्च संवैधानिक पद की गरिमा को ललकारने वाला कदम है। सवाल यह भी बड़ा है कि पीएम के सहयोगी मंत्री अजय मिश्र टेनी का क्या होगा? जिसकी किसान बर्खास्तगी की मांग कर रहे हैं। किसान अब भी अपनी पुरानी मांगों पर ही अड़े हुए हैं और किंचित अतिरेक उत्साह में हैं, उन्हें इस बात का कहीं न कहीं इल्म है कि उनके फौलादी इरादों और अदम्य जज्बों का उन्हें ईनाम मिला है। पर भाजपा सरकार के लिए भी पीएम मोदी का यह विलंबित दांव आसान नहीं रहने वाला। जब तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने का विधेयक सदन में लाया जाएगा तो विपक्षी दल इस पर खूब हाय-तौबा मचाएंगे, वे उन 700 से ज्यादा आंदोलनकर्मी किसानों की शहादत का मुद्दा भी उठाएंगे जिसकी इस आंदोलन को कीमत चुकानी पड़ी। क्या तीनों कृषि कानूनों के विधेयक का भी वही हश्र होने वाला है जो 2014 में मोदी सरकार के ‘संशोधित भूमि अधिग्रहण’ विधेयक का हुआ था, 2015 में एक दिन यूं अचानक पीएम की ओर से ‘मन की बात’ में ऐलान किया गया था कि सरकार इसे वापिस ले लेगी। पर क्या आज एक बदले परिदृश्य में लाखों टूटे मन और बिखरी आस्थाओं को वापिस लिया जा सकेगा, जिनमें उन्हें अपनों के खोने का दर्द भी शामिल है।

 
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