लाल भुलक्कड़

November 28 2009


क्या भूले और क्या याद करें अडवानी जी? अब अटल की राह चल निकले हैं, सब भूलने लगे हैं, गम भी और गिले शिकवे भी। अडवानी की कोर टीम को लगता है कि लौहपुरुष भुलक्कड़ या अमनीसिया के शिकार हो गए हैं। अब तो अडवानी अपनी फोन व मीटिंग भी भूलने लगे हैं। कार्र्यकत्ता सम्मेलन हो, पब्लिक मीटिंग या संसद में स्पीच सब एक सी होती है, सो इसमें अडवानी की अपनी सहुलियत भी शामिल है कि वे चाहे कार्र्यकत्ता मीटिंग की स्पीच संसद में दे डालें क्या फर्क पड़ता है। यदि कोई अडवानी से मिलने उनके घर पहुंचता है तो अडवानी किसी रिटायर्ड आइएएस की चिट्ठी या ‘लेटर टू एडीटर’ वाला घिसा-पिटा आइटम उन्हें जरूर थमा देंगे। भूले से अगर आप एक दिन में दो बार चले गए तो यह उपक्रम दोनों ही बार नियम से दुहराया जाएगा। उनकी तारीफ में चाहे जो भी छपा हो वे अब भी अपनी आंखों में आंसू भरकर पढ़ते हैं। पुराने लेख या चिट्ठियां जो भी अडवानी की तारीफ में हो वह उनके घर ऐसे बंटती है जैसे सत्यनारायण पूजन के उपरांत प्रसाद बंटता है। गलती से अगर कोई पत्रकार उनके घर पहुंच जाए तो उसे कोई पुराना छपा लेख थमाते हुए अडवानी संजीदगी से सलाह देते हैं कि आपको भी ऐसा ही लिखना चाहिए। आत्मश्लाघा और आत्ममुग्घता का फर्क सचमुच भूल गए हैं अडवानी जी। यह वाकई भाजपा के लिए गंभीर चिंता का विषय है।

 
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