हाले हिंदुस्तान के मौजूदा हश्र पर पाब्लो नेरुदा की पंक्तियां कितनी सटीक लगती हैं, …’मुलाकातें आदिम वनों में अंधेरा और नगाड़ों की भीगी हुई मध्दम गमक अकस्मात सुनता हूं मैं पुकार कहीं दूर से छूता हूं घनी-घनी डालें, टहनियां और पाता हूं तुम्हारे चुंबन में स्वाद अपने ही खून का’
…क्या कश्मीर सचमुच हमारा है? श्रीनगर के लाल चौक पर भारतीय तिरंगा फहराने की हसरत से बेदखल, भाजपा नेताओं की दर्दे बयानी एक अलग ही कश्मीर की कहानी कहती है। उमर के कश्मीर की, पाक परस्त मंसूबों के कश्मीर की, अरुण जेतली करीबी आर.पी.सिंह मर्द हैं, कम से कम अपनी पीठ तो दिखा सकते हैं, जिस पर बूटों, लात-घूंसों व लोहे के छड़ों की चोटें दर्ज है, पर दिल्ली महिला भाजपा की अध्यक्ष शिखा राय पब्बी क्या करें, औरत होने की मजबूरी आड़े आ रही है, कश्मीर पुलिस ने बेदर्दी से जहां जख्म दिए हैं उसे बेपरदा भी तो नहीं कर सकतीं। आर.पी. 2008 में पहले भी लाल चौक पर झंडा फहरा चुके थे, सो केंद्रीय नेताओं ने टीम बनाने व छांटने की जिम्मेदारी भी उन्हें ही सौंपी थी, चार-पांच लोगों की छोटी-छोटी टीम हाथों में तिरंगा और मन में हौंसला लिए अलग-अलग दिशाओं व रास्तों से लाल चौक की ओर बढ़ी। चप्पे-चप्पे पर पुलिस थी और साढ़े चार बजे ही सूर्यास्त हो जाना था सो तिरंगा उससे पहले फहराना था, पर सुबह 7.30 बजे ही श्रीनगर स्थित ब्रॉडवे होटल से टीम के एक अहम सदस्य को पकड़ लिया गया, सो पुलिस भी चौकस थी और टीम भी। पर मामला बिगड़ता देख भाजपा नेताओं ने तय किया कि अगर ये लाल चौक न भी पहुंच पाए तो यासीन मलिक के घर के आगे झंडा फहरा देंगे। पर वे मलिक का घर ही नहीं ढूंढ पाए। इनकी एक टीम शिकारे की मदद से लाल चौक के बेहद करीब पहुंच चुकी थी कि एक न्यूज चैनल वाले ने इसकी खबर स्थानीय पुलिस को दे दी। फिर शुरू हुई पकड़-धकड़, और यंत्रणाओं के दौर। कोई 5 घंटों तक उमर की पुलिस ने बर्बरता ही हर हद लांघ दी, जब नजरबंद जेतली को इस बात की भनक लगी तो उसने फौरन फोन कर उमर को हड़काया, इसके बाद भाजपा वाले कश्मीर पुलिस की चंगुल से छूट पाए। जैसाकि आर.पी.कहते हैं ‘उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे वे लाहौर की कोट लखपत जेल में कैद हों,’ कश्मीरियों को रूह की आजादी पहले देनी चाहिए।