अन्ना की तमन्ना हो तो …

April 17 2011


‘… कितनी सदियों का कत्ल होता है एक लम्हे की बदगुमानी से’क्या अमरीका मान चुका है कि मनमोहन सिंह अब नहीं चलाए जा सकते, सो मुशर्रफ की तर्ज पर उन्हें भी बदलने की जरूरत आन पड़ी है, क्या यह महज इत्तफाक है कि अन्ना हजारे के समर्थन में जुटे ज्यादातर एनजीओ पश्चिम से मदद प्राप्त हैं। टीवी चैनल जो खूब मुहिम चला रहे हैं सब में कहीं न कहीं अमरीकी पुच्छल्ला जुड़ा है… कहीं सीएनएन, कहीं फॉक्स तो कहीं रायटर… क्या इसके बाद कश्मीर के लाल चौक पर भी कोई रैली करने की योजना है? क्या अमरीका का कश्मीर के प्रति वही नजरिया है जैसा उसने सर्बिया में किया… एक आजाद कश्मीर का प्रादुर्भाव चाहे अमरीकी हितों का कितना भी पोषण करे, इससे भारत का अखंड राष्ट्रवाद तो आहत होता ही है। सोनिया कहीं से भी अमेरिकी निशाने पर नहीं हैं, क्या सिर्फ प्रधानमंत्री बदल जाने भर से हमारी समस्याओं की इतिश्री हो जाएगी?

 
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