सब खेल गिनती का है

December 04 2011


खुदरा क्षेत्र में एफडीआई के मुद्दे ने भारतीय सियासत में तूफान ला दिया है। पक्ष-विपक्ष में घमासान का यह आलम है कि मध्यावधि चुनाव की गुपचुप आहटें भी सुनी जा सकती हैं। भाजपानीत विपक्ष एक समय गिनती के दौर में आगे चल रहा था, समझा जाता है कि एफडीआई के विरोध में अलख जगाने के लिए उसे लोकसभा में 295 सांसदों का समर्थन हासिल हो गया था, यानी परिस्थितियां इतने विस्फोटक मुहाने पर पहुंच चुकी थीं कि मनमोहन सरकार फ्लोर पर औंधे मुंह लुढ़क भी सकती थी। ऐसे में सरकार के संकटमोचक कांग्रेसी मैनेजर हरकत में आए, तृणमूल व डीएमके जैसे यूपीए के बड़े घटक दलों को मनाने की कवायद शुरू हुई, कांग्रेसी मैनेजरगण ने तो करुणानिधि को आसानी से मना लिया, पर ममता अड़ गई है, उन्हें बमुश्किल इस बात के लिए राजी किया जा रहा है कि अगर एफडीआई के मुद्दे पर सदन में वोट की नौबत आई तो तृणमूल सदन से अनुपस्थित रहेगा, अनुपस्थिति तो डीएमके भी दर्ज कराने वाला है क्योंकि यह फार्मूला भी उन्हीं का सुझाया हुआ है। सदन के बाहर तृणमूल और डीएमके दोनों ही रिटेल में एफडीआई का विरोध जारी रखेंगे और कांग्रेस भी यही चाहती है कि तब तक सदन के काम काज में व्यवधान जारी रहे जब तक वह फिर से 272 के जादुई आंकड़े को छू नहीं लेती है।

 
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