वे कौन हैं जो योगी का मठ उजाड़ना चाहते हैं |
March 19 2018 |
उत्तर प्रदेश चुनावों के हालिया नतीजों ने भाजपा की हालत ऐसी कर दी है जैसे शोर वाली गली में दबे पांव सन्नाटों ने दबिश दी हो। पर भगवा सियासत के ताने-बाने में कई ऐसे अनसुलझे सवाल लिपटे हैं, जिनकी शिनाख्त जरूरी है। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के समक्ष पहले ही यह खुफिया रिपोर्ट पहुंच चुकी थी कि गोरखपुर में इस दफे पासा पलट सकता है, फिर दोनों भाजपा के शीर्ष पुरूषों मोदी व शाह में से किसी ने यह जहमत नहीं उठाई कि वे चुनाव प्रचार के लिए गोरखपुर पहुंचे, इन्होंने एक तरह से गोरखपुर की हार या जीत को योगी के सियासी ताकत से जुड़ा मान लिया, वैसे भी योगी अपनी अलग किस्म की राजनीति के लिए जाने जाते हैं। हालांकि, इन दिनों वे भाजपा के एक अनुशासित सिपाही के मानिंद आचरण कर रहे थे, वहीं भाजपा के शीर्ष नेतृत्व कहीं न कहीं अपने लो प्रोफाइल मुख्यमंत्रियों मसलन मनोहर खट्टर, रघुबर दास, त्रिवेन्द रावत जैसे को ज्यादा तरजीह देता है। यूपी के इन उप चुनावों में संघ की भूमिका को लेकर भी सवाल किए जा रहे हैं कि क्या संघ योगी का अपना स्वाभाविक प्रतिनिधि नहीं मानता? नहीं तो क्या वजह थी कि उप चुनावों से ऐन पहले जब संघ के नंबर तीन दत्तात्रेय होसबोले लखनऊ पहुंचे थे, तो उन्होंने योगी और उनके डिप्टी केशव प्रसाद मौर्य की उपस्थिति में संघ कार्यकर्ताओं से आह्वान किया कि वे उप चुनावों से ज्यादा 2019 के चुनावों की तैयारियों में अभी से जुट जाएं। इस बैठक में यूपी भाजपा चीफ महेंद्र नाथ पांडेय और प्रभारी सुनील बंसल भी मौजूद बताए जाते हैं। सूत्र बताते हैं कि योगी कई बार अपने करीबियों से इस बात का जिक्र कर चुके हैं कि उन्हें शासन चलाने में राज्य की ब्यूरोक्रेसी का इतना साथ नहीं मिल पा रहा है, योगी का तो यहां तक मानना है कि राज्य के कई अफसर सीधे पीएमओ से जुड़े हैं और वहीं से निर्देश लेना पसंद करते हैं। क्या यही वजह नहीं है कि योगी ने शनिवार को अपने 37 आईएएस अफसरों के आनन-फानन में तबादले कर दिए। वहीं दबे-छुपे स्वरों में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी योगी के ’कॉर्डिनेशन और कम्यूनिकेशंस’ में कमी की बात मानता है। वक्त-वक्त की बात है त्रिपुरा में योगी पार्टी के स्टार प्रचारक थे, अब उनकी चमक को अपनों की नज़र लग गई है। |
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