नैतिकता बीमार है, हिंदुस्तान ज़ार-ज़ार है |
March 01 2016 |
स्वच्छता, पारदर्शिता, नैतिकता, शुचिता जैसे खटराग सबसे ईमानदार पीएम के राज में अपने मायने खोते जा रहे हैं, सरकार में हो वही रहा है जो पूर्ववर्त्ती सरकारों में अब तक होता आया है, क्या यह महज़ इत्तफाक है कि मोदी सरकार भी अपने पसंदीदा थैलीशाहों के हित साधने का उपक्रम साध रही है? दवा कारोबारी एक बड़े थैलीशाह का ताज़ा मामला ले लीजिए, 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के पार्टी फंड में दूसरा सबसे बड़ा चंदा देने वाली इसकी कंपनी की सरकार की नई दवा नीति से बल्ले-बल्ले हो गई है। हालिया दिनों में मोदी सरकार ने जिन 61 दवाओं के दाम ’डी-कंट्रोल’ किए हैं, सूत्र बताते हैं कि इनमें से कोई 29 दवाएं बस इसी कंपनी की है। यानी इन दवाओं पर से सरकारी नियंत्रण हटने के बाद कंपनी इन दवाओं के मूल्य अपने हिसाब से तय कर सकती है और जाहिरा तौर कर भी रही है, जैसे अकेले टीबी के दवाओं के दाम पांच गुना तक बढ़ा दिए गए हैं, इस गरीब देश में किस अमीर आदमी को टीबी होता है भला? अमरीका में भी जब एक दवा कंपनी ने एड्स की दवाओं पर सरकारी नियंत्रण खत्म होने के बाद जब इनकी दवाओं के दाम 50 गुणा तक बढ़ा दिए थे, तो अमरीकी सीनेट में हंगामा बरप गया था, संसद तो अपने यहां भी चल रही है, पर किस सांसद की इन मामलों में बोलने में दिलचस्पी है, कंपनियों को उनके मुंह बंद कराने का हुनर जो मालूम है। |
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