इसीलिए मोदी को याद आया कामराज प्लॉन

September 03 2017


इस शनिवार वृंदावन में आहूत संघ की बैठक में जब अमित शाह की मौजूदगी में मोदी सरकार और उनकी आर्थिक नीतियों को आड़े हाथों लिया तो मोदी-शाह द्वय के ज्ञान चक्षु खुल गए। संघ की असली चिंता देश में घटती नौकरियों को लेकर थी ऐसे में मोदी-शाह द्वय को कामराज प्लॉन याद आना ही था। शायद यही वजह है कि मोदी सरकार के इस मौजूदा फेरबदल को ’कामराज प्लॉन’ का नाम मिला है, 1963 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपने मंत्रिमंडल विस्तार में तत्कालीन मद्रास प्रोविंस के चीफ मिनिस्टर के कामराज की सलाहों पर अमल करते एक बड़ा कैबिनेट फेरबदल किया था। 1962 की लड़ाई में चीन के साथ अपनी साख गंवाने के बाद नेहरू की विदेश नीति सवालों के घेरे में थी। तत्कालीन वित्त मंत्री मोरारजी देसाई ने युद्ध के बाद के हालात से निबटने के लिए जनता के ऊपर भारी भरकम टैक्स के बोझ लाद दिए थे, जिसको लेकर जनता में नेहरू को लेकर क्षोभ उपज रहा था। 1963 में ही लोकसभा की तीन सीटों पर हुए उप चुनावों में कांग्रेस को विपक्ष के हाथों मुंह की खानी पड़ी थी, तीन प्रमुख विपक्षी नेता राम मनोहर लोहिया, जेबी कृपलानी और मीनू मसानी बड़ी शान से जीतकर संसद में जा पहुंचे थे, यह नेहरू और कांग्रेस को मुंह चिढ़ाने के लिए काफी था। उस वक्त दक्षिण के सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्रियों में शुमार होने वाले कुमारस्वामी कामराज ने नेहरू को सलाह दी कि लोगों का विश्वास फिर से हासिल करने के लिए यह जरूरी है कि सरकार के सभी टॉप मिनिस्टर अपने पदों से इस्तीफा दें और संगठन के काम में जुटे। सबसे पहले कामराज ने अपना इस्तीफा सौंपा, उसके बाद छह कैबिनेट मंत्रियों ने जिसमें लाल बहादुर शास्त्री, जगजीवन राम व मोरारजी देसाई भी शामिल थे, कांग्रेस शासित राज्यों के पांच मुख्यमंत्रियों, जिसमें कामराज, बीजू पटनायक और एस के पाटिल भी शामिल थे, इन्होंने भी पार्टी व संगठन में काम करने के वास्ते अपने पदों से इस्तीफे दे दिए। सो, अपने मंत्रिमंडल के मौजूदा फेरबदल से मोदी देश के मतदाताओं को एक और संदेश देना चाहते थे कि उनके कार्यकाल में नाकाबिल और भ्रष्ट लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। उनके मंत्रिमंडल के एक बड़े कद्दावर नेता पर अपने मंत्रालय में सैंकड़ों करोड़ के गड़बड़झाला के आरोप थे, सो मोदी ने फौरन उन्हें बाहर का रास्ता दिखाना मुनासिब समझा। राजीव प्रताप रूढी जैसे नेता अपनी पेजथ्री टाइप इमेज से बाहर नहीं निकल पा रहे थे तो उमा भारती की रूचि गंगा को साफ-सुथरी बनाने में कम दिख रही थी, संजीव बालियान बतौर मंत्री अपने को साबित नहीं कर पा रहे थे, तो बंडारू दत्तात्रेय व निर्मला सीतारमण जैसे नेताओं में वेंकैया नायडू द्वारा रिक्त की गई दक्षिण के भगवा नेतृत्व को दमखम से रखने की प्रतिभा देखी जा रही है। निर्मला सीतारमण की पैदाइश तमिलनाडु की है और उनका विवाह कर्नाटक में हुआ है, इसे देखते हुए भाजपा उन्हें दक्षिण में अपना चेहरा बनाने को उत्सुक जान पड़ती है।

 
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