सदन में पस्त सत्ता पक्ष

March 08 2015


एक अदद प्रमोद महाजन की कमी मोदी सरकार को बेतरह महसूस हो रही है, संसद के दोनों सदनों में सत्ता पक्ष का ‘फ्लोर मैनेजमेंट’ बेदम नार आता है, संसदीय कार्य मंत्रियों को इस बात का इल्म भी नहीं होता कि विपक्ष क्या सोच रहा है, उनकी रणनीतियां क्या बुनी गई है? इस बाबत यूपीए 2 के तत्कालीन संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव शुक्ला की तारीफ करनी पड़ेगी जब उन्होंने राज्यसभा में सरकार का एक तिहाई बहुमत नहीं होने के बावजूद ‘ज्यूडिशियल अपाइंटमेंट बिल’ पर एनडीए घटक दलों में ही विभाजन करवा दिया था, तब शिवसेना व अकाली दल जैसे एनडीए के पार्टनर दलों ने सरकार के पक्ष में वोट किया था, शुक्ला संसद चलाने के मामले में प्रणब मुखर्जी को अपना गुरू मानते रहे हैं। प्रणब दा का कहीं शिद्दत से मानना है कि एक कुशल संसदीय कार्य मंत्री की पहचान है कि वह कितना ‘गवमर्ेंट बिजनेस’ सफलतापूर्वक सदन में चला पाता है, इस बाबत रघु रामैय्या की मिसाल दी जा सकती है, सदन चलने के दौरान जिनकी नारें सदैव विपक्षी बेंचों पर ही टिकी रहती थी। मोदी सरकार कम से कम तीन बिल-भूमि अधिग्रहण बिल, कोयला बिल और बीमा बिल को संसद के संयुक्त सत्र में पास करना चाहती है, ऐसे में नजरें माननीय राष्ट्रपति की ओर भी होनी चाहिए कि क्या वे ऐसी परंपराओं को शुरू करने के लिए हरी झंडी देंगे?

 
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