इस दफे कॉलम का आगाज़ मुनव्वर राना के एक नश्तर से चुभते शे’र से- ‘सोचता हूं गिरा दूं सभी रिश्तों के खंडहर / इन मकानों से किराया भी नहीं आता
उसकी फैयाज़ी का अंदाज़ा लगा तो इससे / उसके दरवाजे पे कुत्ता भी नहीं आता।’ एक ऐसे वक्त जब सबको धौंस दिखाने वाला चीन अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में अलग-थलग पड़ता जा रहा है और भारत के लिए पश्चिमी देशों का सपोर्ट मुखर होने लगा है, प्रधानमंत्री मोदी ने भी चीन का नाम लिए बगैर उस पर चौतरफा हल्ला बोल दिया है। पिछले दो-ढाई महीने से विदेश मंत्रालय की चीन से लगातार बातचीत चल रही थी, पर यह बेनतीजा रही। गलवान में हमें लगातार चीन का
हिंसक रूख देखने को मिला। तब भारत की ओर से पहला स्ट्राइक हुआ, जिसमें चीनी कंपनियों के भारत में सरकारी ठेके बंद कर दिए गए, जिससे चीन को थोड़ा बहुत ही सही, एक आर्थिक सुस्ती की ओर धकेला जा सके। भारत ने रूस और फ्रांस से हथियार खरीदे, फ्रांस की उसके बाद समर्थन में चिट्ठी आ गई और चीन के स्वाभाविक मित्रों में शुमार होने वाले रूस के रूख में भी बदलाव दिखने लगा। इस बीच हमारा विदेश मंत्रालय अन्य राष्ट्र प्रमुखों से भी संपर्क साधता रहा जिसमें उसे बहुत हद तक कामयाबी भी मिली। तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात कि भारत ने पहली बार हांगकांग के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में सपोर्ट किया, नहीं तो अब से पहले तक भारत ने चीन के प्रति अपना गुडविल रवैया दिखाने की चाह में न तो तिब्बत के लिए कभी आवाज उठाई और न ही चीन में सज़ा के पात्र बन गए उइगर मुसलमानों के लिए ही संवेदना के दो बोल बोले। इसके बाद 59 चीनी ऐप्प को भारत में प्रतिबंधित कर चीन की बोलती बंद कर दी, जब लद्दाख बार्डर से पीएम ने चीन का नाम लिए बगैर उसे ललकारा तो चीन को बोलना पड़ गया कि ’हमने अपने 14 पड़ोसी देशों में से 12 से अपने सीमा विवाद शांति से सुलझा लिए हैं।’ इस बयान को भारत की कूटनीतिक जीत के तौर पर देखा जा सकता है।