’लफ्जों की बतकहियों से कब कोई किरदार बनता है
लाख तोड़ दो आइने चेहरा उसमें वही जिंदा रहता है’
सियासी मैनेजमेंट की इससे क्या नायाब मिसाल मिल सकती है, कभी पानी पी-पी कर भाजपा और पीएम को कोसने वाले घाटी के नेता इस गुरूवार को जब पीएम मोदी से मिल कर बाहर निकले तो उनके चेहरों से रौनके नूर टपक रहा था। अब ये ‘गुपकार गैंग’ भी ‘गुपकार एलायंस’ हो चुका था, कभी पीएम पर तोहमत लगाते फूट-फूट कर रोए थे फारूख अब्दुल्लाह पर भंगिमाएं तो इस बार उनकी भी बदली हुई थीं। कांग्रेस के ’जी-23’ के नेता गुलाम नबी आजाद ने पीएम के समक्ष अपनी 5 सूत्री मांग रखी थी, जिसमें से एक मांग कश्मीरी पंडितों की घर वापसी की भी थी, वाह आजाद साहब आप तो वाकई नियति के गुलाम निकले कश्मीरी पंडितों की घर वापसी पर तब आपने कोई कदम क्यों नहीं उठाया जब आप 2007-2008 तक जम्मू-कश्मीरी के सीएम थे। सूत्र तो यह भी बताते हैं कि गुलाम नबी की भाजपा के साथ डील फाइनल है कि वे चुनाव के बाद अपने जीते हुए विधायकों के साथ भगवा रंग में रंग जाएंगे, अभी गए तो मुस्लिम वोटों का टोटा पड़ सकता है। वैसे भी घाटी में भाजपा को अपने लिए नए साथी की तलाश है, क्योंकि पीडीपी की महबूबा मुफ्ती से भगवा पार्टी का साथ जून 2018 में ही छूट गया था। फिलहाल जम्मू-कश्मीर में सीटों के परिसीमन का कार्य प्रगति पर है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कश्मीर की 46, जम्मू की 37, लद्दाख की 4 सीटें हैं और 24 सीटें पाक अधिकृत कश्मीर की हैं। ‘जम्मू- कश्मीर रिआर्गेनाइजेशन एक्ट 2019’ में यहां की 7 विधानसभा सीटें बढ़ा दी गई हैं यानी जम्मू-कश्मीर की 83 सीटें बढ़ कर अब 90 हो गई हैं। इतना तो तय है कि नए परिसीमन में आबादी के प्रतिनिधित्व के हिसाब से जम्मू की सीटें बढ़ेंगी, जो यकीनन भाजपा के असर वाला क्षेत्र है। सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में इस परिसीमन आयोग का गठन हुआ है, इस आयोग का कार्यकाल इस वर्ष 5 मार्च तक ही था, पर कोविड की वजह से आयोग को एक साल का एक्सटेंशन दे दिया गया है। पहले कश्मीर की राजनैतिक पार्टियों ने इस आयोग का बॉयकॉट कर रखा था, और वे इसे असंवैधानिक बता रहे थे, पर लगता है पीएम से इस ताजा मीटिंग के बाद ये दल भी परिसीमन पर मान गए हैं। एक पते की बात और कि परिसीमन आयोग के फैसले को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती, जरा समझिए इस बात के मर्म कितने गहरे हैं।