’जब बौराई हवाओं से आने लगी थी बारूद की गंध,
तेरे कहने पर नासमझी का एक दीया हमने भी जलाया था,
पर तुम राजा-मंत्री खेलते रहे, हम घर फूंक तमाशा देखते रहे’
भारत में कोरोना के कहर ने इतना रौद्र रूप अख्तियार कर रखा है कि यह न सिर्फ मासूम जिंदगियों को बल्कि हमारी उम्मीदों को भी निगल रहा है। अमेरिका के ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ के एक आंकड़े के अनुसार कोरोना महामारी की वजह से 3 करोड़ 20 लाख मिडिल क्लास भारतीय अब गरीब की श्रेणी में आ गए हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना काल से पहले भारत के मिडिल क्लास यानी मध्यम वर्ग का आकार 9 करोड़ का था जो अब सिमट कर 6.6 करोड़ पर आ गया है। कोरोना ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है, जिसकी वजह से दिहाड़ी मजदूरों की संख्या में रिकार्ड तोड़ वृद्धि हुई है। एक आंकड़े के मुताबिक भारत की 138 करोड़ आबादी में कामकाजी यानि ‘वर्किंग पॉपुलेशन’ की तादाद 70 करोड़ है, शेष आबादी 15 वर्ष से कम आयु वर्ग की या फिर बुजुर्गों की आबादी है। पिछले वर्ष मई माह में 3.6 करोड़ से अधिक परिवारों ने सरकार से मनरेगा के तहत काम मांगा था, जून में मनरेगा के तहत काम मांगने वाले की तादाद बढ़ कर 4.36 करोड़ तक पहुंच गई। ताजा आंकड़े बताते हैं कि अभी 25 करोड़ भारतीयों ने मनरेगा में काम पाने के लिए आवेदन किया है, अगर कुल वर्किंग पॉपुलेशन की तुलना में देखा जाए तो यह आंकड़ा 40 फीसदी के आसपास ठहरता है। वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मनरेगा के मद में 73 हजार करोड़ रूपयों का प्रावधान किया है, पिछले वित्तीय वर्ष के आबंटित बजट (111,500 करोड़ रूपये) से यह करीब 34.52 फीसदी कम है, जबकि काम मांगने वाले दिहाड़ी मजदूरों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज हुई है। उत्तर प्रदेश में एक मनरेगा कार्ड धारक को प्रतिदिन मात्र 182 रूपए की मजदूरी मिलती है, जबकि इन्हें दिसंबर से अब तक भुगतान भी नहीं हुआ है। इस कोरोना काल में सचमुच जिंदगी सस्ती और जीना महंगा हुआ जा रहा है। करोड़ों भारतीयों के लिए जो दिन आए हैं, वे अच्छे तो नहीं।