’यह रिश्ता जो मैंने मुद्दतों से संभाला हुआ है, यही तो है जिससे दिलों में उजाला हुआ है
रुकना गवारा नहीं मुझे, चलूंगा दूर तक, मेरी इसी बात ने तुम्हें मुश्किल में डाला हुआ है’
राहुल गांधी अपनी ’भारत जोड़ो यात्रा’ की अनुगूंज को सहेजने में लगे हैं, वहीं उनकी मां, बहन और उनके करीबी नेताओं ने उन पर निरंतर दबाव बनाया हुआ है कि कांग्रेस की अध्यक्षीय बागडोर उन्हें ही संभालनी चाहिए। पर राहुल अपने करीबियों की इस राय से इत्तफाक नहीं रखते। राहुल को लगता है कि ’अगर कांग्रेस का नेतृत्व फिर से उनके हाथों में आया तो पीएम को उन पर परिवारवाद के तीर छोड़ने के मौके मिल जाएंगे।’ आसन्न विधानसभा चुनावों के परिप्रेक्ष्य में गुजरात में कांग्रेस की हालत पतली है, वहां भाजपा अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकती है, भाजपा का संख्या बल माधव सिंह सोलंकी के वक्त के रिकार्ड को भी तोड़ सकता है। गुजरात और हिमाचल में अगर हार हुई तो इसका ठीकरा भी राहुल के सिर ही फोड़ा जाएगा। सो, राहुल अपनी पसंद का नया अध्यक्ष चाहते हैं, जिनकी व्यवहार कुशलता और वरिष्ठता को पार्टी में कोई चुनौती न मिल सके। हालिया एआईसीसी अधिवेशन में कांग्रेस के तीन वर्षों के अध्यक्षीय कार्यकाल को भी 5 वर्षों का कर देने का प्रस्ताव है। राहुल और सोनिया ने अपनी ओर से अशोक गहलोत का नाम चुपचाप आगे किया है, बावजूद इसके कि गहलोत अभी भी राजस्थान छोड़ना नहीं चाहते, पर राहुल से जुड़े करीबी सूत्रों का दावा है कि इसके लिए गहलोत को मना लिया जाएगा। दरअसल, राहुल अपने परंपरागत विरोधी राजनैतिक पार्टी को डंके की चोट पर यह संदेश देना चाहते हैं कि ’गांधी परिवार किसी पद का भूखा नहीं है।’ सनद रहे कि कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव 17 अक्टूबर को होना है, जिसके लिए 22 सितंबर को नोटिफिकेशन जारी हो सकता है। अध्यक्ष पद के लिए नामांकन 24 से 30 सितंबर तक होना है। सो, गहलोत के लिए भी अब सोचने के लिए ज्यादा वक्त बचा नहीं है।