’उड़ने वाले परिंदों की कैद से हैरां ये आसमां है
अब तो दीवारों पर भी हर तरफ खरोंचों के निशां हैं’
उठते सवालों के हाथों में हथकड़ियां पहनाने का और असहमति में उठे स्वरों को जेल भेजने का रिवाज किस लोकतंत्र में है? क्योंकि एक जनतांत्रिक व्यवस्था में शासक के लिए जवाबदेही पहले से तय है, और वैसे भी यह एक आज़ाद ख्यालों का मुल्क है, जहां अगर भक्त रहते हैं तो लोकतंत्र के पुजारी भी। सो, यह सवाल सत्य और शाश्वत है कि आज हम वैक्सीन की इतनी किल्लत से क्यों जूझ रहे हैं? सवा सौ करोड़ से ज्यादा आबादी वाले इस देश में आज भी वैक्सीन की दोनों डोज़ लेने वाली आबादी की कुल तादाद महज़ 3 फीसदी है और तकरीबन 13-14 फीसदी भारतीय ऐसे हैं जिन्हें कोरोना वैक्सीन की महज़ 1 डोज़ मिली है। वैसे भी ऐसे वक्त में जब देश में सांसों का हाहाकार है और नित्य दिन आस की हजारों डोर टूट रही हैं। अप्रैल माह में जहां प्रतिदिन देश में 35 से 36 लाख लोगों को वैक्सीन लग रही थी, यह आंकड़ा लुढ़क कर 19 मई तक 11 लाख 66 हजार पर आ गया। ऐसे में हमारे नियंताओं से सवाल पूछे ही जाने चाहिए, पोस्टर-परचम भी लहराए जाने चाहिए। अप्रैल माह में सीरम ने अपने उत्पादित वैक्सीन का एक बड़ा हिस्सा ‘ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन एंड इम्यूनाइजेशन’ यानी ’गावी’ को दे दिया था, ’गावी’ डब्ल्यूएचओ और ‘बिल गेट्स फाऊंडेशन’ का एक संयुक्त उपक्रम है, जिसके तहत वैसे गरीब देशों को मुफ्त वैक्सीन उपलब्ध कराई जाती है जिनके पास वैक्सीन खरीदने के पैसे नहीं है, सीरम से खरीदी गई वैक्सीन में से ही ’गावी’ ने लगभग डेढ़ करोड़ वैक्सीन की डोज़ पाकिस्तान भेजी थी, कहते हैं ’गावी’ ने काफी पहले ही सीरम इंस्टीट्यूट को वैक्सीन उत्पादन के लिए एक बड़ा पैसा एडवांस के तौर पर दिया था। अब राज्यों को वैक्सीन देने से केंद्र ने हाथ झाड़ लिए हैं, लिहाजा अब राज्य सरकारों को अपने लिए वैक्सीन की खरीद खुद करनी होगी, अभी केंद्र ने वैक्सीन की 11 करोड़ डोज़ के लिए सीरम को पेशगी की तौर पर लगभग 1,700 करोड़ रूपए दिए हैं, कहते हैं सीरम के मालिकों ने इसके बाद ही लंदन के पास अपने एक नए प्लांट को शुरू करने के लिए 2,500 करोड़ रूपए लगाए हैं।