डेरों की राजनीति में उलझा पंजाब चुनाव |
February 19 2022 |
विधानसभा चुनाव सिर पर हैं ऐसे में डेरों की पूछ, उनका इकबाल, और राजनेताओं की उनके इर्द-गिर्द परिक्रमा बेहद आम सी बात है। सबसे पहले बात करते हैं जालंधर के सचखंड बल्लां डेरा की। जब चन्नी कैप्टन की सरकार में मामूली मंत्री थे तो वे इस डेरा में अपने साथ नवजोत सिंह सिद्धू को लेकर गए थे, अपने गुरू रंजन दास से सिद्धू को सीएम बनने का आशीर्वाद दिलवाने। गुरूजी ने चन्नी से कहा-’मेरा आशीर्वाद तो तेरे साथ है, फिर तू ही क्यों नहीं बन जाता सीएम?’ इत्तफाक देखिए इसके दो महीने बाद चन्नी प्रदेश के सीएम बन गए। सीएम बनते ही चन्नी भागे-भागे अपने गुरू की शरण में पहुंचे। सचखंड बल्लां डेरा रामदासी संप्रदाय का डेरा है, जिस संप्रदाय से खुद चरणजीत सिंह चन्नी ताल्लुक रखते हैं, इस डेरा का पंजाब की 8-10 विधानसभा सीटों पर खासा प्रभाव है। यह पंजाब की 32 फीसदी दलित आबादी को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण डेरा है। अकाली दल की हरसिमरत कौर, अरविंद केजरीवाल, भगवंत मान ये सभी नेता भी रोज-बरोज अलग-अलग डेरों के चक्कर काट रहे हैं। पंजाब में राधास्वामी ब्यास भी ऊंची जाति के लोगों के एक मान्य केंद्र के रूप में उभरा है। यहां चन्नी भी कई-कई बार मत्था टेक चुके हैं। चन्नी जब मुख्यमंत्री बने तो राधास्वामी ब्यास के प्रमुख गुरिंदर सिंह ढिल्लों चन्नी को आशीर्वाद देने उनके घर पहुंचे थे। सच्चा सौदा या राम-रहीम के डेरा से भला कौन अपरिचित होगा। इस डेरा का भी पंजाब की 35-40 सीटों पर असर बताया जाता है। राम-रहीम अभी जेल में हैं, उन्होंने तीन सप्ताह के लिए पेरोल की अर्जी दी है, बाहर आए तो किसी खास राजनैतिक पार्टी को अपने समर्थन का ऐलान कर सकते हैं। पर अतीत में सच्चा सौदा ने हमेशा से अकाली-भाजपा गठबंधन को अपना समर्थन दिया है, सो उन्हें पेरोल मिल जाने की पूरी संभावना दिखती है। |
Feedback |