’कभी आज़ाद ख्यालों से हर शै गुलज़ार थी तेरी महफिल
आज क्यों तोहमत लगाती नज़रें ढूंढ रही गुनहगार को’
अगर अमृता प्रीतम के शब्दों में कहें तो ’गुलज़ार एक बहुत प्यारे शायर हैं, जो अक्षरों के अंतराल में बसी हुई खामोशी की अज़मत को जानते हैं’ और इस शायर के बारे में एक बात पक्के तौर पर कही जा सकती है कि इन्होंने अपने ख्यालों को कभी सत्ता की चेरी नहीं बनने दिया। कांग्रेस के जमाने में इन्होंने ’आंधी’ बनाई, ’किस्सा कुर्सी की’ कहानी लिखी, जब दिल्ली में निज़ाम का चेहरा भगवा हुआ तब भी इनका विद्रोह वैसे ही आकार लेता रहा। मोदी सरकार के अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी जिनकी सियासी तुकबंदियां समां बांध देती हैं, वे पिछले दिनों मुंबई जाकर शायर, लेखक और फिल्ममेकर गुलज़ार से उनके पाली हिल स्थित बंगले पर मिले। शुरूआती हिचकिचाहटों के बावजूद गुलजार खुलने लगे और यह मुलाकात घंटे भर से ऊपर की रही। दरअसल, नकवी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मान्य एजेंडे को ही ध्यान में रख कर काम कर रहे थे, जिसमें संपर्क-संवाद-समन्वय के भाव को आगे बढ़ाया जाता है। केंद्र सरकार भी चाहती है कि उन शायर, कवि, लेखक, फिल्ममेकर से संवाद का रास्ता खुले जिनका रूझान किंचित वामपंथ की ओर है। कहते हैं इस मुलाकात में गुलजार ने मंत्री जी को एक नायाब सुझाव दिया। गुलजार का कहना था ’अगर भारत में बदलाव की इबारत लिखनी है तो इसके लिए शिक्षा ही सबसे बड़ी माध्यम हो सकती है।’ इन्होंने बताया कि आज भी दक्षिण के राज्यों में जब कोई बच्चा पहली बार स्कूल जाता है तो उसके लिए एक खास तरह की पूजा होती है। देश में 14 नवंबर को ’बाल दिवस’ और 5 सितंबर को ’शिक्षक दिवस’ मनाने की परंपरा तो पहले से है, पर हम कोई ’शिक्षा दिवस’ क्यों नहीं मनाते? ’शिक्षा दिवस’ मनाने से गांव-गांव में और हर घर को यह संदेश जाएगा कि जीवन में अगर आगे बढ़ना है तो शिक्षित होना उतना ही अनिवार्य है। सूत्रों की मानें तो यह आईडिया पीएम मोदी को भी बेतरह रास आया है, केंद्र सरकार जल्द ही इस आशय की घोषणा कर सकती है। सुनने में आ रहा है कि इसके लिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी के जन्म दिवस को चुना जा सकता है। और उक्त तारीख को ‘शिक्षा दिवस’ मनाने की घोषणा हो सकती है।