क्या छत्तीसगढ़ का बवाल थम गया है? |
August 28 2021 |
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपने पचास से ज्यादा समर्थक विधायकों के साथ दिल्ली में डटे थे। वहीं उनके प्रबल विरोधी और उनकी सरकार के हेल्थ मंत्री टी एस सिंहदेव भी ढाई-ढाई साल के सत्ता के फार्मूले को अंजाम देने के लिए दिल्ली में डेरा-डंडा लगाए बैठे थे। भूपेश बघेल की सोनिया-राहुल से अहम मुलाकात के बाद लगभग यह तय हो गया है कि उनकी सत्ता आगे भी बनी रहेगी, ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री के फार्मूले को एक तरह से कांग्रेस शीर्ष ने नकार दिया है। छत्तीसगढ़ के कांग्रेस प्रभारी पीएल पुनिया ने साफ कर दिया है कि ’ऐसा कोई फार्मूला बना ही नहीं था।’ तो सवाल उठता है कि बघेल और सिंहदेव दोनों ने राहुल गांधी से पूर्व में दो-दो मुलाकातें क्यों की? सवाल यह भी उठता है कि यह ढाई-ढाई साल के सीएम का फार्मूला आखिर आया कहां से? सूत्रों की मानें तो जब ढाई साल पहले छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनी थी तो भूपेश बघेल प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे और टीएस सिंहदेव कैंपेन कमेटी के चैयरमेन। तब छत्तीसगढ़ से एक मात्र कांग्रेस के सांसद थे तमरध्वज साहु, जिन्हें पार्टी का ओबीसी चेहरा भी माना जाता है। प्रदेश में ओबीसी जातियों की एक बड़ी तादाद है, जिसमें कोई 20 प्रतिशत आबादी कुर्मी जाति की है और कोई 16 प्रतिशत साहु हैं। तब बघेल और सिंहदेव दोनों का यह डर सता रहा था कि सीएम की रेस में कहीं साहु बाजी ना मार जाएं, सो इन दोनों ने साहु को गेम से बाहर रखने के लिए आपस में हाथ मिला लिया, और ढाई-ढाई साल के फार्मूले पर आपसी रज़ामंदी कर ली, पर पार्टी हाईकमान को इस बारे में अंधेरे में रखा गया, आज यही रौशनी फूट कर बाहर आ रही है, साहु अब भी राज्य के महज गृह मंत्री हैं। |
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