’एक दिन तू भी इस दिल से निकाला जाएगा
आज तकिये के नीचे है चांद
सुबह होते ही इसे आसमां से पुकारा जाएगा’
2024 का आम चुनाव विपक्षी गठबंधन इंडिया और सत्तारूढ़ गठबंधन एनडीए के लिए नाक का सवाल बन चुका है, दोनों ही गठबंधनों की नज़र देश की लगभग 40 फीसदी ओबीसी जातियों को लुभाने पर है। विपक्षी गठबंधन इसके लिए लगातार जातीय जनगणना की मांग दुहरा रहा है, वहीं सत्तारूढ़ गठबंधन ‘रोहिणी कमीशन’ की रिपोर्ट से माहौल बनाने की कोशिशों में जुटा है। केंद्र सरकार की लिस्ट में 3 हजार से ज्यादा ओबीसी जातियां शुमार हैं, जिन्हें ‘सब कैटेगिरी’ में बांटे जाने की मांग उठती रही है। इसी मांग को ध्यान में रख कर केंद्र सरकार ने कोई पांच वर्ष पहले 2 अक्टूबर 2017 को रोहिणी आयोग का गठन किया था, इस कमीशन को अब तक 14 बार एक्सटेंशन मिला है, तब कहीं जाकर कुछ दिन पहले इस कमीशन ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को सौंपी है, यह हजार पन्नों से ज्यादा की रिपोर्ट है। माना जाता है कि इसमें 2600 से ज्यादा ओबीसी जातियों की अपडेटेड लिस्ट है, जिन्हें चार सब कैटेगिरी में बांटने की बात हुई है, एक तो वैसी ओबीसी जातियां जिन्हें अब तलक आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिला इन्हें 10 फीसदी, जिन्हें थोड़ा मिला उन्हें भी 10 फीसदी और जिन पिछड़ी जातियों ने आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ उठाया उन्हें 7 फीसदी आरक्षण देने की बात हुई है। सो, जातीय जनगणना की काट केंद्र सरकार को रोहिणी कमीशन के रिपोर्ट के रूप में मिल गई है। वैसे भी संपन्न ओबीसी जातियां मसलन यादव, कुर्मी, मौर्य, गुर्जर, लोध आदि को भाजपा ने पहले ही अपना वोट बैंक बना लिया है। अब कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर अति पिछड़ों और मजबूत पिछड़ों का अंतर दिखा कर इससे लाभ लेने की कवायद हो सकती है। ओबीसी वोट अब तलक भाजपा व क्षेत्रीय दलों के बीच बंटा हुआ है, 2014 के लोकसभा चुनाव में 34 फीसदी ओबीसी वोट भाजपा को गया था, क्षेत्रीय दलों के खाते में 43 प्रतिशत वोट आए थे। वहीं 2019 के चुनाव में भाजपा ने पासा ही पलट दिया, ओबीसी के 44 फीसदी वोट भाजपा को मिले, वहीं मात्र 26.4 प्रतिशत वोट क्षेत्रीय दलों को। सनद रहे कि रोहिणी कमीशन ने अपनी यह रिपोर्ट केंद्रीय विश्वविद्यालयों व नामचीन शिक्षण संस्थानों जैसे आईआईटी, आईआईएम व केंद्रीय नौकरियों में ओबीसी कोटा के तहत स्थान पा गए एक लाख लोगों के आंकड़ों के आधार पर विभिन्न ओबीसी जातियों का विश्लेषण किया है, अब मोदी सरकार रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट को संसद में चर्चा के लिए लाना चाहती है ताकि इसकी सिफारिशों को जल्द से जल्द लागू किया जा सके।